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________________ आठवाँ गुणस्थान. ( १३५ ) वायुको ऊपरको खींचे, इस प्रकार जो अपान वायुको ऊपर चढ़ाया जाता है उसे मूल बन्ध कहते हैं। ध्यान दण्डक स्तुति नामा ग्रंथमें भी कहा है - संकोच्यापानरन्धं हुतवह सदृशं तन्तुवत्सूक्ष्मरूपं, धृत्वाहृत्पद्मकोशे तदनु च गलकेतालुनि प्राणशक्तिम् । नीत्वा शून्याति शून्यां पुनरपि खगतिं दीप्यमानां समन्ताल्लोका - लोकावलोकां कलयति सकलां यस्य तुष्टोजिनेशः ॥ १ ॥ अव पूरक प्राणायामका स्वरूप कहते हैं द्वादशाङ्गुल पर्यन्तं, समाकृष्य समीरणम् । पूरयत्यतियत्नेन, पूरकध्यान - योगतः ॥ ५५ ॥ श्लोकार्थ - योगी पुरुष अति प्रयत्नसे बारह अंगुल पर्यन्त वायुको खींच कर पूरक ध्यानके योग से पूरता है । व्याख्या - बारह अंगुल पर्यन्त बहते हुए पवनकों बाहर से खींच कर योगी पुरुष बड़े प्रयत्नसे अन्दरके कोठेको या नाड़ी Test पूर्ण करता है, अर्थात् पूर्वोक्त प्राण वायु द्वारा शरीरस्थ कोठे या नाड़ी गणको पूरता है, इसे ही पूरक प्राणायाम कहते हैं । शरीरस्थ वायु नासिकाकी दोनों नाड़ियों द्वारा हमेशह पाँच तत्वोंमें बहता है । जब आकाश तत्वमें बायु बहता है तब फक्त नासिका के अन्दर ही बहता है। तेजस्तत्वमें बहता हुआ वायु नासिकासे चार अंगुल बाहर उर्ध्व गमन करता है । वायु तत्वमें बहता हुआ नासिकासे बाहर छ: अंगुल तिरछि गति करता है । पृथ्वी तत्वमें बहता हुआ नासिकासे बाहर आठ अंगुल मध्यम भावसे याने ऊँचाई नीचाईको वर्ज कर समान गति से ठहरता है। जल तत्वमें बहता हुआ नासिकासे बाहर बारह अंगुल पर्यन्त नीची गति करता है और जल तत्वमें ही बहता हुआ वायु अ
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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