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आठवाँ गुणस्थान. (१२१) ही निजात्म सहज स्वभावके ज्ञान बलसे समस्त मोहके उपशान्त होनेसे उपशान्त मोह नामक ग्यारहवाँ गुणस्थान होता है । अर्थात् उपशम श्रेणा वाला प्राणी जिस स्थानमें समग्र मोहनीय कर्मकी प्रकृतियोंको क्षय न करके सत्तामें ही दवा लेता है उस स्थानको उपशान्त मोह ग्यारहवाँ गुणस्थान कहते हैं।
तथा क्षपक श्रेणी वाले योगीको ही याने जो महात्मा क्षपक श्रेणी द्वारा दश गुणस्थानसे ग्यारहवें गुणस्थानमें न जा कर निष्कषाय शुद्धात्म-भावना वलसे संपूर्ण मोहनीय कर्मको नष्ट करता है, उसे क्षीणमोह नामक बारहवाँ गुणस्थान प्राप्त होता है । अर्थात् जिस स्थानमें जा कर योगी सकल मोहनीय कर्मको नष्ट कर डालता है उसे क्षीणमोह गुणस्थान कहते हैं । इस प्रकार पूर्वोक्त गुणस्थानोंका नामार्थ समझना । ____ अपूर्वकरण नामा आठवें गुणस्थानसे योगी उपशम या क्षपक गुण श्रेणीका प्रारंभ करता है, अतः अब श्रेणी संबन्धि स्वरूप लिखते हैंतत्रापूर्व गुणस्थानाद्यांशा देवाधिरोहति । शमको हि शमणि, क्षपकः क्षपकावलीम् ॥३९॥
श्लोकार्थ-अपूर्व गुणस्थानके आवंशसे ही शमक योगी शम श्रेणी और क्षपक योगी क्षपक श्रेणीको आरोहण करता है।
व्याख्या-इस अपूर्वकरण नामा आठवें गुणस्थानसे ही योगी पुरुष उपशम या क्षपकश्रेणी पर आरूढ होता है । सम्यस्वकी अपेक्षासे तो प्राणी चिरकाल स्थिति वाली श्रेणियाँ च. तुर्थ गुणस्थानसे ही प्रारंभ कर देता है, किन्तु स्वल्पकाल स्थिति वाली और उपरके उनात्म गुणस्थानोंको शीघ्रतासे प्राप्त कराने