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________________ (१२०) गुणस्थानक्रमारोह. स्थान कहा जाता है । सूक्ष्म लोभका अस्तित्व होनेसे सूक्ष्म संपराय नामा गुण स्थान कहाता है । मोहको उपशान्त करनेसे उपशान्त मोह गुण स्थान कहा जाता है और मोहको नष्ट कर देनेसे क्षीण मोह नामा गुण स्थान कहाता है । ___व्याख्या-पूर्वोक्त सप्तम गुण स्थानीय महात्मा संज्वलनके क्रोध, मान, माया, लोभ तथा नव नोकषायोंकी अति मन्दता होने पर अपूर्व परमानन्दमय आत्म परिणामरूप करणको जब माम करता है तब उसे अपूर्वकरण नामा अष्ठम गुणस्थानकी प्राप्ति होती है और इस गुण स्थानमें योगीको अपूर्व आत्मीय गुणोंकी प्राप्ति होती है । तथा देखे हुए, सुने हुए और अनुभव किये हुए जो भोग हैं उनकी आकांक्षादि संकल्प विकल्पोंसे वह रहित होता है । निश्चल तया परमात्मैक तत्वरूप एकाग्र ध्यान परिणतिरूप सद्भावोंकी अनिवृत्ति होनेसे अनिवृत्ति नामक नववाँ गुणस्थान कहाता है । इस गुण स्थानको अनिवृत्ति बादर भी कहते हैं, उसका यह कारण है कि इस गुण स्थानमें रहने वाला महात्मा अप्रत्याख्यानादि बारह बादर कपायों तथा नव नोकषायोंको उपशम श्रेणी वाला उपशान्त करनेके लिये तथा क्षेपक श्रेणी वाला क्षय करनेके लिए तैयार होता है, बस इसीसे इस नववें गुणस्थानको अनिवृत्ति बादर कहते हैं। सूक्ष्म परमात्मतत्वकी भावनासे, एक लोभका मात्र अंश वर्ज कर ग्यारह कषाय तथा नव नोकषाय, मोहनीय कर्मकी इन बीस प्रकृतियोंके शान्त या क्षय होनेपर केवल एक खंडी भूतनोभांशकी विद्यमानता होनेसे सूक्ष्म कषाय या सूक्ष्म संपराय नामा दसवाँ गुण स्थान कहाता है । उपशम श्रेणी वाले योगीको
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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