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________________ (१२२) गुणस्थानक्रमारोह. वाली उपशम या क्षपकश्रेणीको अपूर्वकरण नामा आठवें गुणस्थानके आग्रंश ही से प्रारंभ करता है, याने आठवें गुणस्थानमें प्रवेश करते ही उपशमक उपशमश्रेणी और क्षपक क्षपकश्रेणीमें आरूढ़ हो जाता है। ___ अब प्रथम उपशमश्रेणी आरोहण करने वालेकी योग्यता बताते हैंपूर्वज्ञः शुद्धिमान युक्तो, ह्याद्यैः संहननैत्रिभिः। संध्यायन्नाद्यशुक्लांशं, स्वां श्रेणीशमकः श्रयेत् ।।४०॥ ___ श्लोकार्थ-पूर्वगत ज्ञानका ज्ञाता, शुद्धिमान् तथा आदिके तीन संहननोंसे युक्त शमक योगी शुक्लध्यानका आवंश ध्याता हुआ स्व श्रेणीको आश्रय करता है । व्याख्या-उपशमक योगी शुक्ल ध्यानके प्रथम पायेको जिसका स्वरूप आगे चलकर कथन किया जायगा, ध्यानका विषय करता हुआ अपनी श्रेणीको प्रारंभ करता है । परन्तु वह योगी कमसे कम एक १ पूर्वगत ज्ञानको जानने वाला, निरति चार चारित्रको पालने वाला और आदिके वजू ऋषभ नाराच, ऋषभ नाराच, नाराच, इन तीन संहननों से युक्त होना चाहिये । पूर्वोक्त विशेषण विशिष्ट ही मुनि उपशमश्रेणीको अंगीकार करता है। श्रेणी संबन्धि विषयमें शमक या उपशमक और क्षपक, ये दो शब्द प्राय विशेष तया आयेंगे सो इस विषयमें समझना कि जो योगी उदय भावमै आई हुई कर्म प्रकृतियोंको नष्ट न करके उन्हें सत्तामें दबाता हुआ ऊपरके गुणस्थानों में चढ़ता है उसे १, जिस महाशयको पूर्वी के विषयमें विशेष जानना हो वह . परिशिष्ट पर्वका दुमरा भाग देख लेवे ।
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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