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________________ (१००) गुणस्थानक्रमारोह. विराजता है। तारा मंडलसे दश योजन ऊपर सूर्यका विमान है। सूर्यके विमानसे ८० अस्सी योजन ऊपर चन्द्रमाका विमान है और उससे ऊपर बीस योजनके अन्दर सर्व ज्योतिषियों के विमान हैं । चन्द्रमाका विमान सामान्य तया एक योजनका 'इकसठिया छप्पन भागका लंबा चौड़ा है। सूर्यका विमान सामान्य तया एक योजनका इकठिया अड़तालीस भागका लंबा चौड़ा है और ग्रह, नक्षत्र तथा ताराओंके विमान क्रमसे दो कोस, एक कोस और आधा कोसके परिमाणवाले हैं । ढाई द्वीपके याने मनुष्य क्षेत्रके ऊपरके ज्योतिषियोंके विमान अर्ध कविठ (आधेकैत) फलके समान संस्थानवाले हैं और ढाई द्वीपसे बाहरके ज्योतिषियों के विमान ईंटके समान आकृतिवाले हैं। वहाँसे कुछ कम सात राज जो ऊपर रहता है उसे उर्ध्वलोक कहते हैं। वहाँपर वैमानिक देवता पूर्वकृत असंख्य पुण्य राशिका सुखरुप फल भोगते हैं । उर्ध्वलोकमें बारह देवलोक कल्पवासी, नव ग्रैवेयक और पाँच अनुत्तर विमानवासी हैं। पूर्वोक्त स्थानोंमें सब मिलकर ८४९७०२३ चौरासी लाख सत्तानवें हजार और तेईस विमान हैं। पुण्यकी अति अधिकता होनेपर ही पूर्वोक्त विमानोंमें जीव जन्म धारण करता है और वहाँ पर घिरकाल तक रहकर शुभ कर्मजन्य पाँचों इन्द्रियों संबन्धि सुखका अनुभव करता है। पूर्वोक्त कितने एक विमानोंके आकार चार कोनेवाले और कितने एक विमानोंके तीन कोनेवाले हैं। कितने एक विमान गोल आकारवाले भी हैं । सर्वार्थ सिद्ध विमानसे १ एक योजनके इकसठ विभाग करनेपर उसमें से छप्पनवें विभागकी लंबाई चौड़ाईके परिमाणमें चन्द्र विमान है । इसी प्रकार अड़तालीसवाँ भाग सूर्य के लिए भी समझ लेना ॥
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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