SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छठा गुणस्थानं. (१०१) ऊपर कोई विमान नहीं है, वहाँसे बारह योजन ऊपरं सिद्धशिला है। वह शिला स्फटिक रत्नके समान स्वच्छ और निर्मल है, उसकी लंबाई चौड़ाईका परिमाण ४५ पैंतालीस लाख योजनका है। सिद्धशिला अरजुन सुवर्णकी है और उसका आकार गोल है । जिस प्रकार एक कटोरा घीसे भरा हुआ हो और वह जैसे वेत गोलाकारमें देख पड़ता है, वैसे ही श्वेत गोल आकारवाली वह सिद्धाशला है । सिद्धाशलाके ऊपर एक योजनके चौबीसवें भाग जितनी जगहमें अनन्त सिद्धात्मा अचल अरूपी अवस्थामें अवस्थित हैं। सिद्धात्माओंके ऊपर लोकाकाशकी अवधि पूर्ण होनेके कारण सिद्धात्मा अलोकसे अड़कर रहते हैं। जीवके छः संस्थान होते हैं। जिस संस्थान या आकारमें मिनेश्वर देवकी प्रतिमा होती है, उसे समचौरस संस्थान कहते हैं । जिस तरह कोई एक बड़का वृक्ष नीचेसे सपड़चट और ऊपरसे शाखा प्रशाखाओंसे लह लहाया सुशोभित देख पड़ता है, वैसे ही जो शरीर कटी भागसे नीचे अशोभनीय और ऊपरसे सुशोभित होता है, उस आकारको निग्रोध परिमंडल संस्थान कहते हैं । जैसे किसी वृक्षका ऊपरी भाग सूख जानेसे वह भड़ा मालूम पड़ता है और नीचेसे शाखा प्रशाखाओंसे शोभनीय देख पड़ता है, उसी प्रकार जो शरीर ऊपरसे अशोभनीक और नीचेसे सुन्दर आकृतिवाला होता है, उसे सादि संस्थान कहते हैं । ठिंगनी आकृतिवाले शरीरको वामन संस्थान कहते हैं। कमरमें या छातीमें कुबड़ापन होता है, उस शरीराकृतिको कुब्ज संस्थान कहते हैं। अर्ध दग्ध मुरदेके समान जो शरीर तमाम अवयओंसे खराब होता है, उसे हुंडक संस्थान कहते हैं । नरकमें, पाँच स्थावरोंमें, तीन विकलेन्द्रियोंमें (दो इन्द्रियसे चौरिन्द्रियवाले जीवोंको विकलेन्द्रिय कहते हैं ) तथा असंही
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy