SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छठा गुणस्थान. (९९) समान गोल दो लाख योजन चौड़ा लवण समुद्र है । लवण समुद्रके चारों ओर गोल आकारवाला और चार लाख योजन चौड़ा धातकीखंड नामा द्वीप है। धातकीखंड द्वीपके चारों ओर पूर्वोक्त चूड़ीके आकारवाला और आठ लाख योजन चौड़ा कालोदधि नामक समुद्र है । कालोदधि समुद्र के चारों तर्फ सोलह लाख योजनकी चौड़ाईवाला पुष्कर द्वीप है। इस तरह एक एकके चारों तर्फ और एक दूसरेसे दो गुणी चौड़ाईको धारण करनेवाले स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त असंख्य द्वीप समुद्र हैं । स्वयंभूरमण समुद्र लोकके अन्तमें आता है, इस लिए वहाँ पर द्वीप समुद्रोंकी अवधि आ जाती है, उससे आगे अलोकाकाश होनेके कारण वहाँ पर जीव अजीवकी स्थिति या गति नहीं हो सकती, अर्थात् जीवाजीवकी गति या स्थिति केवल लोकाकाशमें ही हो सकती है। समस्त असंख्य द्वीप समुद्रोंकी संख्या करने पर अन्तिम स्वयंभू रमण समुद्रकी संख्या तीन लाख योजनकी अधिक होती है । पूर्वोक्त पुष्कर द्वीपके अन्दर मध्य भागमें गोल आकारवाला चूड़ीके समान मानुष्योत्तर नामका एक पर्वत है, इस लिए पुष्कर द्वीपके गोल आकारवाले चूड़ीके समान दो विभाग पड़ते हैं। उन दो विभागोंमेंसे मध्यके भागमें ही मनुष्योंकी वसति है, बाहरके भागमें पशु वगैरह जीव रहते हैं। इस प्रकार जंबूद्वीप, धातकीखंड और आधा पुष्करद्वीप मिलकर यह ढाई द्वीप मनुष्य क्षेत्र कहा जाता है, अर्थात् पूर्वोक्त ढाई द्वीपोंमें ही मनुष्योंकी उत्पत्ति होती है अन्य द्वीपोंमें नहीं । जंबूद्वीपके मध्य भागमें मेरु पर्वत है, मेरु पर्वतकी जड़में चारों तर्फ सम भूमि है और अन्यत्र ऊंची नीची है, अतः मेरु पर्वतके समीपकी सम भूमिसे लेकर ७९० सातसौ नव्चय योजन ऊपर तारा मंडल
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy