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________________ ( ९८ ) गुणस्थानक्रमारोह. तीन राज ऊपर जायें तब ब्रह्म देवलोक नामा पाँचवाँ देवलोक आता है । जब बारहवें अच्युत नामक देवलोक तक पहुँचते हैं तब वहाँ पर क्रमसे बढ़ती बढ़ती लोककी पाँच राज लंबाई चौड़ाई आती है। वहाँसे फिर तीन राज ऊपर जाते हुए क्रमसे घटती घटती एक राजकी लंबाई चौड़ाई रहती है। उसके ऊपर लोकाग्र मोक्ष स्थान है । जिस तरह नीचे से दोनों पैर चौड़े करके और दोनों हाथोंको दोनों तर्फके कटी भागोंपर रख कर शरीर में जामा पहन कर कोई मनुष्य खड़ा हो, उस मनुष्यकी जैसी आकृति उस वक्त देख पड़ती है, बस वैसी ही आकृतिवाला यह लोकाकाश ज्ञानी पुरुषोंने फरमाया है। इस विषयका विशेष वर्णन भगवती सूत्रमें किया है। पूर्वोक्त लोकके मध्य भागमें एक राज लंबी चौड़ी और सातवीं नरकसे मोक्ष स्थान पर्यन्त ऊंची, सीढ़ीके आकारवाली एक त्रसनाल है । उस त्रसनालके अन्दर त्रस तथा स्थावर दो प्रकारके जीव भरे हुए हैं और बाकी के लोकमें केवल स्थावर ही जीव भरे हुए हैं । पूर्वोक्त त्रसनालके अन्दर मध्यलोकसे नीचे सात राज पर्यन्त सात नरक स्थान हैं । जब जीवकी असंख्य पापराशि इकट्ठी होती हैं तब वह जीव अपने पाप कर्मके अनुसार उन नरक स्थानोंमें जन्म धारण करके वहाँ पर चिरकाल पर्यन्त रह कर मध्यलोकमें उपार्जन किये हुए अशुभ कर्म के दलियोंका अति दारुण दुःख रूप फल भोगता है । मध्यलोकके मध्य भागमें एक लाख योजन ऊंचा और दश हजार योजन नीचे विस्तारवाला स्थंभाकार एक मेरुपर्वत नामा पर्वत है, उसे कंचनगिरि भी कहते हैं। मेरुपर्वत के चारों तर्फ चूड़ी के आकारवाला गोल और एक लाख योजन लंबा चौड़ा जंबू नामका एक द्वीप है। उस जंबू द्वीपके चारों तर्फ चूड़ी के
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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