________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
धम॥६००॥धमेण विणा जिणदेसिए। ननत्थ अस्थि किंचि सुहं ठाणं वा कजं वा सदेवमणुयासुरे लोए ॥१॥अत्थं धम्म काम || जाणिय जाणि तिन्नि मिच्छति (न्ति) जं तत्थ धम्मजंतं सुभभियराणि असुभाणि॥२॥ आयासकिलेसाणं वेराणं आगरो भयकरो यो बहुदुक्खदुग्गइकरो अत्थो मूलं अणत्थाणं॥ ३॥ किच्छाहिं पाविजे जे पत्ता बहुभयकिलेसदोसकरा। तक्खणसुहा बहुदुहा संसारविवद्धणा कामा ॥४॥नत्थि इहं संसारे ठाणं किंचिवि निरुवहुयं नामोससुरासुरेसुमणुए नरएसु तिरिक्खजोणीसु॥५॥ बहुदुक्खपीलियाणं मइमूढाणं अणप्यवसगाणी तिरियाणं नत्थि सुहं नेइयाणं कओ चेव?॥६॥हयगब्भवासजम्मणवाहिजरामरणरोगसोगेहिं अभिभूए माणुस्से बहुदोसेहिं न सुहमत्थि ॥७॥ मंसट्टियसंघाए मुत्तपुरीसभरिए नवच्छिड्डे। असुई परिस्सवंते सुहं सरीरम्मि किं अत्थि?॥ ८॥ इ8 जणविपओगो चाभयं चेव देवलोगाओ। एयारिसाणि सग्गे देवावि दुहाणि पाविति॥ ९॥ ईसाविसायमयकोहलोहदोसेहिं एवमाईहिं । देवाविसमभिभूया तेसुविय कओ सुहं अस्थि? ॥६१०॥एरिसयदोसपुण्णे खुत्तो संसारसायरे जीवो।जं अइचिरं किलिस्सइ तं आसवहेउयं सव्वं॥१॥रागहोसपमत्तो इंदियवसओ करेइ कमाइंआसवदारेहिं अविगुणेहिं तिविहेणं करणेणं ॥२॥धी थी मोहो जेणिह हियकामो खलु स पावभायरइ। न हु पावं हवइ हियं विसं जहा जीवियत्थिस्स ॥३॥ रागस्स य. दोसस्सय धिरत्युजं नाम मतोऽविपावेसु कुणइ भावं आउरविजय अहिरासु॥४॥लोभे अहवघत्थो कजन गणेइ आयअहियाई।। अइलोहेण विणस्सइ मच्छुव्व जहा गलं गिलिओ॥५॥ अत्थं धम्म काम तिण्णिवि बुद्धो जणो परिच्चयइ ताई करेइ जेहि अन) | श्री मरणममाधिसूत्र॥
| पृ. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only