SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेव दाराई॥४॥इक्को करेइ कम्मं फलमवि तस्सेक्कओ समणुहवइ । इक्को जायइ भरइ य परलोयं इकओ जाई॥५॥ पत्तेयं पत्तेयं नियगं|| कम्मफलमणुहवंताणी को कस्स जए सयणो? को कस्सव परजणो भणिओ? ॥६॥को केण समं जायइ? को केण समं च परभवं जाईको वारे किंची? कस्सवको कं नियत्तेई? ॥७॥अणुसोअइ अण्णजणं अन्नभवंतरगयं तु बालजणोनविं सोयइ अप्याणं किलिस्समाणं भवसमुद्दे॥८॥अनं इमं सरीरं अन्नोऽहं बंधवावि मे अन्नोएवं नाऊण खमं कुसलसन तंखभं काउं? ॥९॥हा! जह मोहियमइणा सगइभग्गं अजाणमाणेणी भीमे भवकंतारे सुचिरं भमियं भयकरम्मि॥ ५९०॥ जोणिसयसहस्सेसु य असई जायं मयं वणेगासु। संजोगविप्पओगा पत्ता दुक्खाणि य बहूणि॥११ सम्गेसु य नरगेसु य माणुस्से तह तिरिक्खजोणीसुं। जायं मयं च बहुसो संसारे संसरंतेणं॥ २॥ निब्भत्थ्णावभाणणवहबंधणरूंधणा धणविणासोणेगा य रोगसोगा पत्ता जाईस इहोगासो लोए वालग्गकोडिभित्तोऽविजिम्मणभरणाबाहा अणेगसो जत्थ न य पत्ता॥४॥सव्वाणि सव्वलोए रूवी दव्वाणि पत्तपुव्वाणि। देहोवक्खरपरिभोगयाइ दुक्खेसु य बहुसुं॥५॥ संबंधिबंधवते सव्वे जीवा अणेगसो मझो विविहवहवेरजणया दासा सामी य मे आसी॥६॥लोगसहावो धीधी जत्थ व माया मया हवइ धूया।पुत्तोऽविय होइ पिया पियावि पुत्ततणमुवेइ॥७॥ जत्थ पियपुत्तगस्सवि माया छाया भवंतरगयस्सो तुट्ठा खायई मंसं इत्तो किं कट्ठयरमन्नं? ॥८॥धी संसारो जहियं जुवाणओ परमरूवगव्वियओ।मरिऊण जायइ किमी तत्थेव कलेवरे नियए॥९॥ बहुसो अणुभूयाई अईयकालम्मि सव्वदुक्खाई। पाविहिइ पुणो दुक्खं न करेहिइ जो जणो | ॥श्री मरणसमाधि मूत्र | ३८ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021035
Book TitleAgam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages57
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy