SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ अनुयोगद्वारसूत्रे इत्यादिषु तरङ्गवत्याः करणं मलयवत्याः करणम् इत्यादि रूपेण व्याख्या कार्यां । तथा निर्देशस्तु ग्रन्थरचनारूपार्थमात्रोपलक्षको बोध्य इति। तथा-ऐश्वर्यद्योतकैः शब्दस्तद्वितमत्यये सति यद्रूपं निष्पद्यते तदैश्वर्यनाम। यथा-राजैव राजकः । ईश्वर एव ईश्वरकः । तलवर एव-तलवरकः। एषु स्वार्थिकः कः। माडम्बिका कौटुम्बिकः इभ्यः एते तु तद्धितान्ता एव । श्रेष्ठिकः सार्थवाहकः सेनापतिकः, एतेष्वपि स्वार्थिकः कः। तथा-अपत्यार्थ तद्धितात्यये सति यन्नाम निष्पद्यते तदपत्यनाम। अर्हन्माता चक्रवर्तिमाता बलदेवमातेत्यादिभिः शब्दैरहंदादीनां आस्मानुषष्टिकार आदि को भी जानना चाहिये । इस प्रकार यह संयूथ नाम है । (से किं तं ईसरियनामे ) हे भदन्त ! ऐश्वर्य नाम क्या है ? (ईसरियनामे) उत्तर-ऐश्वर्य नाम इस प्रकार से है-अर्थात् ऐश्वर्यद्योतक शब्दों से तद्धित प्रत्यय करने पर जो रूप निष्पन्न होता है वह ऐश्वर्य नाम है-जैसे (रायए ईसरए, तलवरए, माडंथिए, कोडुबिए, इन्भे, सेटिए, सस्थवाहए, सेणावइए) राजक, ईश्वरक, तलवरक, माडंबिक, कौटुम्बिक इभ्य,श्रेष्ठिक, सार्थवाहक, सेनोपतिक। इनमें माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य ये ऐश्वर्य नाम तो तद्धित प्रत्ययान्त हैं। तथा राजा, ईश्वर, तलवर श्रेष्ठी, सार्थवाह, सेनापति ये ऐश्वर्य नाम स्वार्थ में कप् प्रत्यय होने से निष्पन्न हुए हैं ( से तं ईसरियनामे ) इस प्रकार यह ऐश्वर्य नाम है । (से किं तं अवच्चनामे ?) हे भदन्त ! अपत्यनाम क्या है ? ( अवच्चनामे) કરવી.” એવું થાય છે. આ પ્રમાણે આત્માનુષષ્ટિકાર વગેરે વિષે પણ જાણી व समा प्रमाणे या स यूथ नाम छे. (से कि त ईसरिय नामे) 3 मत! अश्व नाम शुछ १ (ईसरिय नामे) ઉત્તર-એશ્વર્યા નામ આ પ્રમાણે છે. અર્થાત ઐશ્વર્ય દ્યોતક શબ્દોથી તદ્ધિત પ્રત્યય કરવામાં આવે અને જે રૂપ નિષ્પન્ન થાય છે, તે ઐશ્વર્ય નામ छ रेभ (रायए, ईसरए, तलवरए, माडंबिए, कोडुबिए, इन्भे, सेटिए, सत्थवाहए, सेणावइए) २४, श्व२४, २४, मामि, मि, ध्क्ष्य, શ્રેષ્ટિક, સાર્થવાહક, સેનાપતિક, આમાં માડંબિક, કૌટુંબિક, ઈભ્ય, આ બધા એશ્વર્ય નામ તે તદ્ધિત પ્રત્યયાન્ત છે, તેમજ રાજા, ઈશ્વર, તલવર, શ્રેણી, સાર્થવાહ, સેનાપતિ આ બધાં ઐશ્વર્ય નામે સ્વાર્થમાં “g" પ્રત્યય થવાથી निष्पन्न थये। छे. (से त ईसरियनामे) मा प्रमाणे ॥ भैश्वय' नाभा छे. (से कि त अवचनामे १) ३ महन्त ! अ५त्यनाम थेट शु? (अवचनामे) For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy