SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८६ तद्धितनामनिरूपणम् मातृनामान्दुपलक्षितानि । ततोऽपत्यार्थे तद्धितप्रत्ययेन यन्नाम निष्पद्यते, तदपत्यनाम । यथा - मरुदेव्या अपत्यं मारुदेवेय ऋषभोऽर्हन् । त्रिशलाया अपत्यं त्रैशलेयो महावीरोऽन् । सुमङ्गलाया अपत्यं सौमङ्गलेयो भरतश्चक्रवर्ती | रोहिण्याः अपत्यं रौहिणेयो बलदेवः । देवक्या अपत्यं दैवकेयः कृष्णो वासुदेवः । वेळनायाः अपत्यं चैलनेयः कूणिको राजा । धारिण्या अपत्यं धारिणेयः - मेघकुमारो मुनिः । रुद्रसोमाया अपत्यं रौद्रसोमेयः- आर्यरक्षितो वाचक इति । एतानि अष्टविधानि तद्धितजानि नामानि बोध्यानि । अमुमेवार्थे सूचयितुमाह - तदेतत्तद्धितजमिति । उत्तर - अपत्य नाम इस प्रकार से है - ( अरिहंत माया चक्क बट्टिमाया, बलदेवमाया, वासुदेव माया, राय माया, मुणिमाया वायग माया, सेतं अवच्चनामे ) अपत्य अर्थ में तद्धित प्रत्यय करने पर जो नाम निष्पन्न होता है वह अपत्य नाम है, जैसे मरुदेव का पुत्र मारुदेवेय - ऋषभनाथप्रभु, त्रिशला का पुत्र शलेय- भगवान महावीर, सुमंगला का अपत्य - सौमंगलेव - चक्रवर्ती भरत, रोहिणी का अपत्यरौहिणेय - पलदेव, देवकी का पुत्र दैवकेय- कृष्ण वासुदेव, चेलना का पुत्र चैलनेय-कूणिक राजा, धारिणी का पुत्र धारिणेय - मेघकुमार मुनिरुद्र सोमा का पुत्र रौद्र सौमेय- आर्यरक्षितवाचक इस प्रकार ये अपत्य अर्थ में हुए तद्धित प्रत्यय से जन्य नाम हैं । ( से तं तद्धित ) ये उपर्युक्त आठ प्रकार के नाम तद्धित प्रत्यय से निष्पन्न होने के कारण तद्वितज नाम कहलाते हैं । अब सूत्रकार धातुज नामों का कथन करते हैं - (से किं तं धाउए) हे भदन्त ! धातुज ( धातुओं से उत्पन्न होने वाला ) नाम क्या है ? (घाउए) उत्तर-अपत्यनाभ या प्रमाये छे. (अरिहंत माया चक्कवट्टिमाया, बलदेवमाया, वासुदेवमाया, रायमाया, मुणिनाया, वायगमाया, से त अवच સામે) અપત્યનામ અ માં તષ્ઠિત પ્રત્યય લગાડવાથી જે નામ નિષ્પન્ન થાય છે. તે અપત્ય નામ છે. જેમ કે મરૂદેવીના પુત્ર, માર્દવેય ऋषभनाथ प्रलु. त्रिशसानो पुत्र त्रैशसेय, लगवान महावीर, सुभगલાનું અપત્ય સૌમગલેય, ચક્રવર્તી ભરત, રાહિણીનુ અપત્ય-રોહિણેય મલદેવ, દેવકીના પુત્ર દકેય, કૃષ્ણે અથવા વાસુદેવ, ચેલાનાના પુત્ર ચૈલનેય, ણિક રાજા. ધારણના પુત્ર ધારિણેય-મેઘકુમાર મુનિ, સામના પુત્ર રૌદ્ર સૌમેય-આય રક્ષિત, આ પ્રમાણે આ અપત્ય અર્થમાં થયેલ તદ્ધિત પ્રત્યયથી निष्पन्न नामो छे. ( से तं तद्धितर) या उपयुक्त आ प्रहारना नाभेो तद्धित પ્રત્યયથી નિષ્પન્ન થયેલા હોવા બદલ તદ્ધિતજ કહેવાય છે. હવે સૂત્રકાર धातुनामनु उथन रे छे. (से कि त धाउए) हे लहांत ! धातु-धातुथी उत्पन्न थयेस नाम इया या छे ? (धाउए) For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy