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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir agrinafar टीका सूत्र २४१ क्षेत्रसमवतारादीनां निरूपणम् ७१७ वारस्तदुभयसमत्रतारश्चेति द्विविधः । तत्र भरतं वर्षमात्नसमवतारेण आत्मभावे समवतरति, तदुभयसमवतारेण तु जम्बूद्वीपे समत्रतरति आत्मभावे च । एवं जम्बूद्वीपादयोऽपि आत्मसमत्रतारेण आत्मभावे समवतरन्ति तदुभयसमत्रतारेण एते उत्तरोत्तरस्मिन स्वापेक्षया बृदत्यमाणे क्षेत्रविभागे समवतरन्ति आत्मभावे चेति उत्तर-- (खेत्तसमोघारे) धर्मादिक द्रव्यों की जहां वृत्ति होती हैअर्थात् धर्मादिक द्रव्यों का जहां निवास होता है उसका नाम क्षेत्र है, इस क्षेत्र का जो समवतार है, वह क्षेत्र समवतार है । यह क्षेत्र समवतार (दुविहे पत्ते) दो प्रकार का कहा गया है । (तं जहा) जैसे (आयसमोयारे य तदुभयसमोयारे य) एक आत्मसमवतार और दूसरा तदुभय समवतार | (भरहे वाले आयसमोयारेणं आयभावे समोयर, तदुभयसमोयारेणं जंबूद्दीवे समोवरह आयभावे य) आत्मसमवतार की अपेक्षा लेकर जब यह विचार किया जाता है कि- 'भरतक्षेत्र कहां रहता है ? तब इसका उत्तर यह होता है कि- 'भरत क्षेत्र आत्मसमवतार की अपेक्षा आत्मभाव में रहता है, और तदुभय समवतार की अपेक्षा जंबूद्वीप में रहता है । एवं अपने निजस्वरूप में भी रहता है । (जंबूद्दीवे आपसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभय समोयारेण तिरियलोए समोयरद्द आयभावे य) जंबूद्वीप आत्मसमतार की अपेक्षा आत्मभाव में रहता है और तदुभय समवतार की अपेक्षा तिर्यक लोक में भी रहता है और आत्मभाव में भी रहता है। उत्तर:-- (खेलस्रमोयारे) धर्माद्रिव्योनी क्यां वृत्ति होय, भेटले કે ધર્માદિક દ્રવ્યેાનુ. જયાં નિવાસ છે, તેનું નામ ક્ષેત્ર છે. આ ક્ષેત્રસમવતાર (दुविहे पण्णत्ते) मे अारना उडेवामां आवे छे. (तं जहा ) ঈभ } (आयस मोयारे य तदुभयस्रमोयारे य ) खेड आत्मसंभवतार અને દ્વિતીય તદ્ભય समयतार (भरहे वासे आयसमोयारेणं आयभावे समोपर, आयभावे य्) आत्मसभवतारनी अपेक्षा से न्यारे या प्रभा विचार કરવામાં આવે છે કે ‘ભરતક્ષેત્રમાં રહે છે ?' ત્યારે આના જવાબ આ પ્રમાણે હાય છે કે ભરતક્ષેત્ર આત્મસમવતારની અપેક્ષા આત્મભાવમાં રહે છે અને તદ્રુભય સમવતારની અપેક્ષા જમૂદ્રીપમાં રહે છે, તેમજ पोताना निन स्वइयां पशु रहे' (जंबूद्दीवे आयसमोयारेणं आयभावे समायर, तदुभयसमायारेण तिरियलोए समोयरइ आयभावे य ) वृद्धीय આત્મસમવતાની અપેક્ષા આત્મભાવમાં રહે છે અને તદ્રુભય સમવતારની અપેક્ષા એ તિય ક્લાકમાં પશુ રહે છે, અને આત્મભાવમાં પણ રહે છે. For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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