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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१८ मनुयोगद्वारसूत्रे बोध्यम् । प्रकृतमुपसंहरबाह-स एष क्षेत्रसमवतार इति । अथ कालसमवतारं निरूपयति । तत्र-अथ कोऽपौ कालसमवतार: ? इति शिष्यप्रश्नः। उत्तरयतिकालसमवतारः-कलयन्ति समयादिरूपेण परिच्छिन्दन्ति ज्ञानिनो यं स काला, तस्य समवतारः । स च आत्मसमवतारः तदुभयसमवतारश्चेति द्विविधः । तत्र-समय आत्मसमवतारेण आत्मभावे समवतरति, तदुमयसमवतारेण स्वापेक्षया बृहत्प्रमा णायामावलिकायां समवतरति आत्मभावे च । एवम् आवलिकादिषु प्रत्येकम् (तिरियलोए आयसमोयरे णं आयभावे समोयरह, तदुभयसमोयारे णं लोए समोयरइ आयभावे य) इसी प्रकार तिर्यक् लोक भी आत्मसमवतार की अपेक्षा आत्मभाव में रहता है और तदुभय समवतार की अपेक्षा लोक में भी रहता है एवं आत्मभाव में भी रहता है। (से तं खेत्तसमोयारे) इस प्रकार यह क्षेत्र समवतार है। (से कित कालसमोयारे ?) हे भदन्त ! वह पूर्व प्रक्रान्त काल समवतार क्या है ? - उत्तर-(कालसमोयारे) ज्ञानी जन जिसे समय आदि रूप से जानते हैं-उसका नाम काल है । इस काल जो समवतार है, वह काल समवतार है वह काल समवतार (दुविहे पण्णत्ते) दो प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है । (तं जहा) जैसे (आयसमोयारे य तदुभयसमोयारे य) एक आत्मसमवतार और दूसरातदुभय समवतार । (समए आयसमोयारेणं आयभावे समो. यरइ) आत्म समवतार की अपेक्षा समय आत्मभाव में रहता है। (तदु. भय समोयारेणं आवलियाए समोयरह, आयभावे य) तदुभय समवतार 'तिरियलोए आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं लोए समोयरइ आयभावे य) या प्रमाणे तिय ४५ मामसभतारनी अपेक्षा આત્મભાવમાં રહે છે અને તદુભય સમવતાની અપેક્ષાએ લેકમાં પણ રહે २. मन माममामा ५५ २ छ. (से ते खेत्तसमोयारे) मा प्रभारी मात्र समवतार छ. (से कितं कालनमायारे १) महत! ५१ પ્રકાન્ત કાલ સમવતાર શું છે? उत्तर--(कालसमोयारे) ज्ञानी २ समय वगेरेन। ३५मा नये છે તેનું નામ કાળ છે. આ કાળને જે સમવતાર છે. તે કાળ સમવતાર છે. a sim समत.२ (दुविहे पण्णत्ते) में मारने अज्ञात ये छे. (तं जहा) २ (आयसमोयारे य तदुभयसमोयारे य) से मामसता२ भने द्वितीय तमय समवतार (समए आयसमोयारेणं आयभावे समायरइ) मात्मसमतारनी पेक्षा समय मामलम २३ छे. (तदुभयसमोयारे णं आवलियाए समायरई, For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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