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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २३८ वक्तव्यताद्वारनिरूपणम् शिष्येण पृष्टो गुरुराह -'तत्थ' इत्यादि । तत्र नयसप्तकमध्ये नैगमसंग्रहव्यव हारास्त्रिविधामपि वक्तव्यता मिच्छन्ति, नैगमस्य अनेकगमपरत्वात् , संग्रहस्य सथिसंग्राहकत्वात, व्याहारस्य च लोकव्यवहारपरवात् । ऋजुसूत्रन्तु स्वपमयवक्तव्यतां परसमययक्तव्यतां चेति द्विविधामेव वक्तव्यतामिच्छति । अत्र हेतुमाह-'तत्थ' इत्यादि, तत्र-तृतीयवक्तव्यताभेदे खलु या सा स्वसमयवक्तव्यता सा ससमयं प्रनिष्टा-वक्तव्यतायाः प्रथमे भेदेऽन्तर्भूना । या तु परकिस वक्तव्यता को अंगीकार करता है ?' लो कहते हैं (तस्थ णेगमसंगहयवहारा तिविहं वत्तव्वयं इच्छंति) सात नयों में जो नैगमनय संग्रहनय और व्यवहार नय ये तीन नय हैं, वे तो तीनों प्रकार की वक्तव्यता को स्वीकार करते हैं क्योंकि नैगमनय अनेक गमों में तत्पर होता है-अर्थात् नैगमनय अनेक प्रकार से वस्तु का प्रतिपादन करता है-इसकी दृष्टि में (तं जहा ससमय०) स्वसमयवक्तव्यता भी ठीक है, परसमयवक्तव्यता भी ठीक है और स्वपरसमयवक्तव्यता भी ठीक है। इसी प्रकार सर्वार्थसंग्राहक होने से संग्रहनय और लोक व्यवहार के अनुसार प्रवृत्ति करने में तत्पर होने के कारण व्यवहारनय भी इन तीनों वक्तव्यताओं को मान्य रखता है । (उज्जुसुमो दुविहं वत्तव्वयं इच्छइ, तं जहा सप्तमयवत्तव्यं, परसमयवत्तव्वयं) ऋजुसूत्र नय स्वसमयवक्तव्यता और परसमयवक्तव्यता इन दो वक्तव्यताओं को मान्य रखता है। क्योंकि (तत्य णं जा सा ससमयवत्तव्यया सा ससमय पविठ्ठा) तीसरी जो स्वसमय परसमयवक्तव्यता है उसमें (तत्थ णेगमसंगहववहारा तिविहं वत्तव्यय इच्छंति) सात नोभा २ नमः નય, સંગ્રહ નય, અને વ્યવહાર નય આ ત્રણ ન છે, તે તે ત્રણે પ્રકારની વકતવ્યતામાને છે. કેમકે ગમન અનેક ગામોમાં તત્પર હોય છે, એટલે નિગમનય અનેક પ્રકારથી વસ્તુનું પ્રતિપાદન કરે છે. આ નયની દષ્ટિએ (तं जहा ससमय०) स्वसभयतव्यता ५y 88 छ, ५२समय १४तव्यता५] ઠીક છે, અને સ્વપરસમય વકતવ્યતા પણ ઠીક છે. આ પ્રમાણે સર્વાર્થ સંગ્રાહક હોવાથી સંગ્રહનય અને લેકવ્યવહાર મુજબ પ્રવૃત્તિ કરવામાં તત્પર હોવાથી ०३१४२ नय५ मा तणे पातयतासाने मान्य से छे. (उज्जुसुओ दुविह वत्तव्वय इच्छइ, तं ससमयवत्तव्यय, परसमयवत्तव्ययं) ऋ सूत्रनय સ્વસય વકતવ્યતા અને પર વકતવ્યતા આ બે વક્તવ્યતાઓને માન્ય રાખે छे. भ. (तत्थ णं जा सा ससमयवत्तव्वया सा ससमय पविट्ठा) श्री २ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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