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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २३५ नवविधमसंख्येयकनिरूपणम् ६६९ युक्तासंख्येयकगतरूपराशिस्तावतैव राशिना गुणित इति तात्पर्यम् । एवं च यो राशि निष्पन्नस्तत एकस्मिन् रूपेऽपसारिते उत्कृर्षक युक्तासंख्येयकं भवति अनपसारितस्तु स राशिः जघन्यकासंख्येयकासंख्येयक भवति । अत एवाहअथवा जघन्यकम् असंख्येयासं ध्येयक रूपोनम् उत्कर्ष के युक्ताऽसंख्येयक भवतीति । इत्थं युक्तासंख्येयकस्य भेदत्रयं निरूपप संपति असंख्पेयासंख्येयकस्य मेदत्रयं निरूपयति-तत्र जघन्यकम् असंख्येयासंख्येयक कियद् भवति ? इति है। (उनकोसयं जुत्तास खेज्जयं केवयं होइ) हे भदन्त ! उत्कृष्ठ युक्तासंख्यात का क्या स्वरूप है ? उत्तर:-(जहण्णएणं जुत्तास खेज्जएणं आवलिया गुणिया, अण्णमण्णभासो रूघुणो उक्कोसयंजुत्तासंखेखेजयं होह, अहवा-जहन्नयं असं खेवासंखेनयं ख्घुणं उक्कोतयं जुत्तासंखेजयं होह) जघन्य युक्तासंख्यात से आवलिका का गुणा करो अर्थात्-जघन्ययुक्तासंख्यात को जघन्य युक्तासंख्योत के साथ गुणो-गुणा करने पर जो राशि आवे उसमें से एक कम करो-इस प्रकार करने पर जो बचे वह उस्कृष्ट युक्तासंख्यात है। एक कम नहीं करने पर वह राशि जघन्य असं. ख्यातास ख्यात रूप मानी जाती है । इसी बात को सूत्रकार ने 'अहवा' पद से प्रकट किया है-इसमें यह कहा गया है कि 'जो जघन्य असंख्यातास ख्यात है-' उसमें से एक कम करने पर वह उत्कृष्ट युक्ता. संख्यात कहलाता है। (जहाणयं असंखेजात खेज्जयं केवयं होह) हे भदन्त ! जघन्य जो असंख्यातासंख्पात है, वह कैसा होता है? सूत्र५४ 43 सम११प्रयत्न - छ. (उक्कोसय जुत्तास खेज्जय' केवइय होइ १) कृष्ट युत.सध्यातनु ५१३५ शु छ ? उत्तर-(जहण्णएणं जुत्तासंखेज्जएण आवलिया गुणिया, अण्णमण्णभासो रूवूणो उक्कोसय जुत्तासंखेज्जय होइ, अहवो जहन्नय असंखेज्जासंखेज्जय' रूवूणं जुत्ता खेज्जय होइ) धन्य युद्धतास यातथी मान २ । એટલે કે જઘન્ય યુકતાસંખ્યાતને જઘન્ય યુક્તાસંખ્યાતની સાથે ગુણાકાર કરે, ગુણાકાર કરવાથી જે રાશિ આવે તેમાંથી એક ઓછો કરે. આ રીતે કરવાથી જે બાકી રહે તે ઉત્કૃષ્ટ યુક્તાસંખ્યાત છે. એક ઓછો ન કરી એ તે તે રાશિ જઘન્ય અસંખ્યાતાસંખ્યાત રૂપ માનવામાં આવે છે. એ " पात सूत्रधारे 'अहवा' पहथा प्रगट री छे. तमां २५० ४२वामा આવ્યું છે કે જે જઘન્ય અસંખ્યાતા સંખ્યાત છે તેમાંથી એક ઓછો કરવાથી For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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