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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७० अनुयोगद्वारसूत्रे शिष्यप्रश्नः। उत्तरयति-जघन्यकेन युक्तासंख्येयकेन आवलिका गुणिता अर्थात्-अन्योऽन्याभ्यासः कृतः-जघन्य कयुक्तासंख्येयकगतरूपराशिस्तावतैव राशिना गुणित इति तात्पर्यम्, प्रतिपूर्णः एकरूपापसरणवर्जितो जघन्यकम् असंख्येयासंख्येयकं भवति । एतदेव शब्दान्तरेणाह-अथवा उत्कर्ष के युक्तासंख्येयके एक रूपं प्रक्षिप्तं तदा जघन्यकम् असंख्येयासंख्येयकं भवति । ततः परम् अजघन्यानुत्कर्ष काणि स्थानानि भवन्ति । कियदवधि तानि भवन्ति ? इस्याह-यावत् उत्कर्षकम् असंख्येयासंख्येयक न प्राप्नोतिएकोत्तरिकया वृदया उत्तर--(जहन्नएणं जुत्तासंखेज एणं आवलिया गुणिया, अण्णमण्गामासो पडिपुण्णो जहाणयं असंखेनासंखेजय होइ) जघन्य युक्तासंख्यात के साथ आवलिका का गुणाकरो-इसका तात्पर्य है कि-'जघन्य युक्तासंख्यात का जयन्ययुक्तसंख्यात के साथ गुणाकरो और गुणा करने पर जो राशि आवे उसमें से एक कम मत करो-यहां जघन्य असंख्यातासंख्यात है। (अहवा उक्कोसए जुतासखेजए रूवं पक्खित्तं जहण्यं अमखेजासंखेज्जयं होइ) अथवा उत्कृष्ट युक्तासंख्यात में एक मिलादो सो जघन्य असंख्यातास ख्यात है। (तेण पर अजहण्णमणुककोसवाई ठागाइं जाव उस्को लयं असंखेजासं खेज्जयं ण पाचह) इसके बाद अजघन्यानुस्कृष्ट के स्थान होते हैं । और ये स्थान वहां तक होते हैं कि, जब तक उस्कृष्ट असंख्यातासंपात नहीं आ जाता। उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात स्थान लाने के लिये जघन्य असंख्यातसंख्यात से a४५८ युतास-यात उपाय छे. (जहण्णय असं वेज्जास खेजय' केवइय होइ १) महत! धन्य मध्यातायात छे, तनु १५३५ छ ? उत्तर-जहन्नएण जुत्ता संखेजएणं आवलिया गुणिया, अण्णमण्णभासो पडिपुण्णों जहण्णय' असंखेज्जासंखेन्जय होइ) धन्य युटतास यातनी સાથે આવલિકાને ગુણાકાર કરો આનું તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે જઘન્ય ચુકતાસંખ્યાતને જઘન્ય યુકતાસંખ્યાતની સાથે ગુણાકાર કરો, ગુણાકાર કરવાથી જે રાશિ આવે તેમાંથી એક છે કરે, નહિ તો એજ જઘન્ય असभ्यातायात छे. (अहवा उक्कोसए जुत्तासंखेज्जए एवं पक्खित्तं जहण्णय' असंखेज्जासंखेजय होइ) अ ट युद्धतासयातमा मे तो तन्य अभ्यातास ज्यात 25 ५ छे. (तेण परं अजहण्णमणुक कोसयाई ठाणाई जाव उनकोसय' असंखेज्जामखेजय' ण पावइ) त्यार પછી અજઘન્યાનુકૂદનાં સ્થાને હોય છે. અને તે રથાને ત્યાં લગી હેય For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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