SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 633
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१६ अनुयोगद्वारसूत्रे किं तं' इत्यादि । अथ कोऽसौ ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तो द्रव्यशङ्खः ? इति शिव प्रश्नः । उत्तरयति - ज्ञायकशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्तो द्रव्यशङ्ख त्रिविधः प्रज्ञतः, तद्यथा - एकभविको वायुकोऽभिमुखनामगोत्रश्चेति । तत्र - यो जीव मुवाऽनन्तरभवे शवृत्पत्स्यते, सत्तेष्वव द्वायुष्कोऽपि जन्मदिनादारभ्य एकभविकः शङ्ख उच्यते । तथा यः शङ्खप्रायोग्यं कर्म बद्धवान् स वद्धायुष्कः शङ्खः । ases में प्रतिपादित इन्हीं प्रकारों के जैसा जानना चाहिये । अब नोआगम शंख का जो तृतीय भेद है, वह इन से विलक्षण है । इसलिये सूत्रकार उसे प्रश्नोत्तर पूर्वक कहते हैं - (से किं तं जाणयसरीरrfarसरीर वहरित दव्वसंखा ?) हे भदन्त । ज्ञायकशरीर और भव्यशरीर से व्यतिरिक्त जो द्रव्यशंख है, उसका क्या स्वरूप है ? उत्तर-- ( जाणयसरीरभविय सरीरवइरित्ता दव्यसंखा तिविहा पण्णत्ता) ज्ञायकशरीर और भव्यशरीर इन दोनों से व्यतिरिक्त द्रव्य. शंख तीन प्रकार का कहा गया है (तं जहा उसके वे प्रकार इस प्रकार 'से हैं - ( एगभविए, बद्ध उए, अभिमुहणामगोसे य-अ ) एकभविक, ish अभिमुख नामगोत्र ! जो जीव मरकर अनन्तर भव में शंखपर्याय से उत्पन्न होगा, वह उस पर्याय में अभी तक अबद्धायुष्क है, तो भी जब से वह उत्पन्न हुआ है-तभी से लेकर वह एकभविक शंख कहलावेगा । तथा जिस जीव ने शंख पर्याय में उत्पन्न कराने योग्य कर्म का बंध कर लिया है, ऐसा वह जीव बद्धायुष्क शंख कह જોઇએ. હવે નાઆગમ દ્રવ્યશખના જે તૃતીય ભેદ છે. તે એના કરતાં વિક્ષણુ छे, ोधी सूत्रार तेना विषे प्रश्नोत्तर पूर्व यर्या रे छे (से कि तं जाणयसरीरभवेिसरीवइरित्ता दवसंखा ?) हे लत! ज्ञाय शरीर मने अव्य શરીરથી વ્યતિરિકત જે દ્રવ્યશ ખ છે, તેનુ સ્વરૂપ કેવુ છે? उत्तर- ( जाणयसरीरभजियसरीरवइरित्ता दव्वसंखा વ્યતિરિક્ત प्रकारे या mà mlayu જ્ઞાયક શરીર અને ભવ્ય શરીર એ બન્નેથી प्रावामां आवे छे. (तं जहा) तेना afkq, 1931, afugeaum̃à 1–4) â; alas, maıyı નામ ગેાત્ર, જે જીવ મરછુ પામીને અન ́તર ભવમાં શંખ પર્યાયમાં ઉત્પન્ન થશે, ને શ ́ખ પર્યાયમાં હજી સુધી અખદ્ધાયુ‚ છે. છતાંએ જયારથી તે ઉત્પન્ન થયેલ છે, ત્યારથી માંડીને તે એકભિવક કહેવાશે. તેમજ જે જીવે શખ પર્યાયમાં ઉપન્ન થવા ચેાગ્ય કમબંધ કરેલ છે, એવે! તે જીવ બદ્ઘાયુષ્કશખ For Private And Personal Use Only तिरिहा पण्णत्ता ) દ્રવ્યશ`ખના ત્રણ प्रमाणे छे. (एग
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy