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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २३० संख्याप्रमाणनिरूपणम् कथिकम् स्थापना तु इत्वरिका वा यावत्कथिका भवति । नामसंख्यास्थापनासंख्याविषये विशेषभावना नामावश्यकस्थापनावश्यकानुसारेण कर्तव्या । तथाद्रव्यशङ्खः आगमनो भागमभेदेन द्विविवः । तत्र नोआगमतो द्रव्यशङ्खस्त्रिविधो ज्ञायकशरीरद्रव्यशङ्खः भव्यशरीरद्रव्यशङ्खः ज्ञायकशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्तो द्रव्यशङ्खथ । अत्र आगमतो द्रव्यशङ्खः, नो आगमतो द्रव्यशङ्खस्याद्यभेदद्वयं च द्रव्यावश्यकस्येव विज्ञेयम् । तृतीयभेदस्य ततो विलक्षणत्वात् तं वकुमुपक्रमते 'से Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१५ उत्तर--(णामं ? आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा होज्जा) नाम यावत्कथिक होता है तथा स्थापना इश्वरिक भी होती है और यावत् कथिक भी होती है । नाम संख्या एवं स्थापना संख्या इन दोनों के विषय का खुलाशा अर्थ और भेद नाम आवश्यक और स्थापना आवश्यक के अनुसार समझ लेना चाहिये । यह प्रकरण पीछे स्पष्ट लिखा जा चुका है । (से किं तं दव्वसंखा ?) हे भदन्त ! द्रव्यशंख का क्या तात्पर्य है ? उत्तर -- (द०वसंखा दुविहा पण्णत्ता) द्रव्यशंख दो प्रकार का कहा गया है । (तं जहा) जैसे (आगमओ य नो आगमओ य जाव) आगम ror शंख और नो आगमद्रव्यशंख । इनमें नो आगम की अपेक्षा से doria तीन प्रकार का होता है-एक ज्ञायक शरीर द्रव्यशंख, दूसरा भव्य शरीर द्रव्य शंख, और तीसरा ज्ञायकशरीर भव्यशरीर व्यति. रिक्त द्रव्य शंख | आगम की अपेक्षा से द्रव्यशंख का और नोआगम की अपेक्षा से द्रव्यशंख के प्रथम और द्वितीय भेद का स्वरूप द्रव्या - (णामठत्रणा को पइविसेसो) नाम भने स्थापनामा थे। तावत है ? उत्तर-- णाम आवकहियं, ठत्रणा इत्तरिया वा होज्जा आत्रकहिया वा होज्जा) नाम यावत् थित होय छे, ते स्थापना त्वरि पशु होय छे. અને યાવત્ કથિત પશુ હોય છે. નામસંખ્યા અને સ્થાપનાસખ્યા આ બન્ને વિષયે વિષે અર્થ અને ભેદ નામઆવશ્યક તેમજ સ્થાપના આવશ્યક મુજબ સમજી લેવું જોઈએ. આ પ્રકરણ વિષે પહેલાં સ્પષ્ટતા કરવામાં આવી છે. (તે कि त दव्वसंखा १) डे लहांत ! द्रव्य शमनुं शुं तात्पर्य है ? For Private And Personal Use Only उत्तर- ( दव्वसंखा दुविधा पण्णत्ता) द्रव्य शमना मे हा होय छे. (तं जहा) नेम (आगमओ य नो आगमओ य जाव) यागम द्रव्य श અને નાઆગમ દ્રવ્યશ‘ખ આમાં નાઆગમની અપેક્ષાએ દ્રવ્યશ ́ખના ત્રણ પ્રકારે હાય છે. ગાયક દ્રવ્યશ'ખ, ભવ્યશરીર દ્રવ્યશ'ખ અને જ્ઞાયક શરીર ભવ્યશરીર અતિરિકત દ્રવ્યશ’ખ. આગમની અપેક્ષાએ દ્રવ્ય શખના પ્રથમ અને દ્વિતીય ભેદનું સ્વરૂપ દ્રષાવશ્યકમાં પ્રતિપાદિત થયેલ આ પ્રકારેાની જેમ જ સમજવું
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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