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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २३० संख्याप्रमाणनिरूपणम् पोत्थकम्मे वा जाव से तं ठवणसंखा। नामठवणाणं को पइविमेसो? नाम आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होजा आवकहिया वा होज्जा। से किं तं दवसंखा? दवसंखा-दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-आगमओ य नो आगमओ य जाव, से किं तं जाणयसरीर-भवियसरीरवइरित्ता दवसंखा ? जाणयसरीरभवियसरीर वइरित्ता दवसंखा-तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-एगभविए, बद्धाउए, अभिमुहणामगोत्ते य। एगभविए णं भते! एगभविएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोमेणं पुव. कोडी। बद्धाउएणं भंते! बद्धाउएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? जहण्णेणं अंतोमुहृत्तं उक्कोसेणं पुचकोडीतिभागं। अभिमुहनामगोएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? जहन्नेणं एकं समय उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं । इयाणिं को णओकं संखं इच्छइ, तत्थ णेगमसंगहववहारा तिविहं संखं इच्छंति, तं जहा-एगभवियं बद्घाउयं अभिमुहनामगोत्तं च। उन्जुसुओ दुविहं संखं इच्छइ, तं जहा-बद्धाउयं च अभिमुहनामगोत्तं च। तिपिण सदनया अभिमुहणामगोत्तं संखं इच्छति। से तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दवसंखा। से तं नो आगमओ दवसंखा। से तं दध्वसंखा ॥सू०२३०॥ ___ छाया-अथ किं तत् संख्यापमाणम् ?, संख्याप्रमाणम्-अष्टविधं पज्ञप्त, तद्यथा-नामसंख्या, स्थापनासंख्पा, द्रव्पसंख्या, औषम्यसंख्या, परिमाणसंख्या, ज्ञानसंख्या, गणनासंख्या, भावसंख्या । अथ काऽसौ नामसंख्या ?, नामसंख्यायस्य खलु जीवस्य वा यावत् सा एपा नामसंख्या । अथ काऽसौ स्थापनासंख्या? For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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