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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ५५२ अनुयोगवारसत्रे विषयीभवन्तीति सूचयितु तदुपन्यासः कृतः । केवलदर्शनं-सकलदृश्यविषयत्वेन परिपूर्ण दर्शनम् , तच्च केवलदर्शनिनः केवलावरणक्षयाविर्भूततल्लब्धि पतो जीवस्य सर्वद्रव्येषु मू मूर्तेषु सर्वपर्यायेषु च भवन्तीति । मनः पर्ययज्ञानं तु तथाविधः क्षयोपशमवशात् सर्वदा विशेषानेव गृह्णाति, न सामान्यम् , अतस्तदर्शनं नोक्तम् । संपति प्रकृतमुपसंहरन्नाह-तदेतदर्शनगुणप्रमाणमिति ॥सू०२२५॥ ___ अथ चारित्रगुणप्रमाणं निरूपयति मूलम्-से कि तं चरित्तगुणप्पमाणे? चरित्तगुणप्पमाणेपंचविहे पण्णत्ते, तं जहा सामाइयचरित्तगगुप्पमाणे छेओवट्ठावणचरित्तगुणप्पमाणे परिहारविसुद्धि य चरित्तगुगप्पमाणे सुहुमसंपरायचरित्तगुणप्पमाणे अहक्खायचरित्तगुणप्पमाणे। ने यहां पर्यायों को उसके विषयरूप से वर्णित किया है। (केवल दसणं केवलदंसिणस्स सव्वदब्वेसु य सव्वपज्जवेसु य-से तं दंसण. गुगप्पमाणे) समस्तरूपी और अरूपी पदार्थों का सामान्यरूप से जाननेवाला होने के कारण परिपूर्ण जो दर्शन है, वह केवलदर्शन है। यह केवलदर्शन, केवलज्ञानावरण कर्म के क्षय से आविर्भूत लब्धि संपन्नवाले जीव को मूर्त और अमूर्त रूप समस्तद्रव्यों और उनकी समस्त पर्यायों में होता है । मनः पर्ययदर्शन नहीं होता है। इसका कारण यह है कि-'मनःपर्ययज्ञान तथाविधक्षयोपशम के वश से सर्वदा विशेषों को ही ग्रहण करता है। सामान्य को नहीं। इस प्रकार यह दर्शनगुण का निरूपण है । सू० २२५ ॥ વિષે થઈ જાય છે. એ જ વાતને સૂચિત કરવા માટે સૂત્રકારે અહી पर्यायाने तना विषय ३५ वर्णित ४२६ छ. (केवलदसणं केवलदंसणिस्स सव्वदव्वेसु य सव्वपज्जवेसु य-से त' दंणगुणप्पमाणे) समस्त ३था भने અરૂપી પદાર્થોને સામાન્ય રૂપથી જાણનાર લેવા બદલ પરિપૂર્ણ જે દર્શન છે, તે કેવલન છે. આ કેવલદર્શન, કેવલ જ્ઞાનાવરણ કર્મના ક્ષયથી અવિત લબ્ધિ સમ્પન્નવાળા જીવને મૂર્ત અને અમૂર્ત રૂપ સમસ્ત દ્રવ્ય અને તેમની સમસ્ત પર્યામાં હાવ છે મનઃપર્યાયદર્શન હોતું નથી. આનું કારણ આ છે કે “મન:પર્યયજ્ઞાન તથાવિધ ક્ષપશમના વશથી સામાન્યને नहि ५५ सहा विशेषाने 1 6 3रे छ। ॥ सू. २२५ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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