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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org मनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २२५ दर्शनगुणप्रमाणनिरूपणम् उक्तं च "दव्वाओ असंखेज्जे, संखेज्जे यावि पज्जवे हई | दो पज्जवे दुगुणिए, लहइ उ गाउ दव्वाओ || छाया - द्रव्येषु असंख्येयान् संख्येयान् वा ऽपि पर्यवान् लभते । द्वौ पर्याय द्विगुणित मते चैकस्मिन द्रव्ये ॥ इति । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , द्वौ पर्यायौ द्विगुणितौ चतुर इत्यर्थः, अत्रोच्यते ननु पर्याया विशेषा उच्यन्ते, न च दर्शनं विशेषविषयं भवितुमर्हति सामान्यस्यैव तद्विषयत्वात् कथं पुनः पर्याया इहावधिदर्शनविषयत्वेनोक्ताः ? इति चेदाह - घटशरावोदञ्चनादिभिः केवलं सामान्यमेव मृदादि तथा तथा विशिष्यते, न पुनस्ते तत एकान्तेन व्यतिरिज्यन्ते, अतो मुख्यतः सामान्यमेव विषयं भाति, गुणीभूतास्तु विशेषा अध्यस्य उसके विषयभूत कही गई हैं। कहा भी है- दव्वाओ असखेज्जे' इत्यादि गाथा जो कही है, उसका तात्पर्य यही है । शंका- पर्यायें तो विशेषरूप होती हैं और दर्शन विशेष को विषय नहीं करता - उसका विषय तो सामान्य कहा गया है। फिर क्या बात है जो पर्यायों को अवधिदर्शन को विषयभूत कहा गया है । उत्तर--मिट्टीरून सामान्य की जो घट, शराव, उदश्व आदि पर्यायें हैं; उन पर्यायों के द्वारा केवल सामान्यरूप मिट्टी आदि पदार्थ ही उस रूप से विशेषित किये जाते हैं वे पर्यायें अपने सामान्य से एकान्ततः जुदी तो है नहीं। इसलिये मुख्यरूप से तो दर्शन का विषय सामान्य ही होता है परन्तु गुणीभूत जो विशेष हैं, वे भी इसके विषय हो जाते हैं। इसी बात को सूचित करने के लिये सूत्रकार भूत उडेवामां भावी छे, કહેવામાં આવી છે તેનુ' તાત્પય' એ જ છે. ५५१ पशु छे- 'दव्वाओ असंखेज्जे' वगेरे गाथा भे શકા-પાઁચાતા વિશેષરૂપ હાય છે અને દન વિશેષને વિષય અનાવતું નથી, તેને વિષય તા સામાન્ય કહેવામાં આવ્યા છે. તા પછી આવુ શુ` છે કે જેથી પર્યાયાને અવધિદર્શન-વિષયભૂત કહેલ છે. For Private And Personal Use Only ઉત્તર-માટી માટી રૂપ સામાન્યની જે ઘટ, શરાવ, ઉદાંચ વગેરે પર્યા છે, તે પાંચા વડે ફક્ત સામાન્ય રૂપ માટી આદિ પદાર્થો જ, તદ્ન તદ્ રૂપથી વિશેષિત કરવામાં આવે છે, તે પાંચ પેાતાના સામાન્યથી એકાન્તતઃ ભિન્ન તા છે જ વહિ. એટલા માટે મુખ્ય રૂપમાં તે દશનના વિષય સામાન્ય જ હાય છે. પરંતુ ગુણી ભૂત જે વિષય છે, તે પણ એના
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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