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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्रे नीतेति द्विविधम् । तत्र-साधम्र्योपनीत-साधम्र्येण उपनीतम्=उपनयो यत्र तत् साधोपनीतम् , तच्च किश्चित्ताधम्र्योपनीतं प्रायःसाधोपनीतं सर्वसाधम्योपनीतं चेति त्रिविधम् तत्र-किंचित् साधोपनीतं-किंचित् अल्पेन साधार्येण= सादृश्ये। उपनीतम् उपनयविषयीकृतम् , तच्च यथा मन्दरस्तथा सर्षपः यथा सर्पयस्तथा मन्दर इत्यादि । अत्र-मन्दरसर्पपयोव लत्वेन सादृश्यम् । समुद्रएक साधोपनीत, और दूसरा वैधयोपनीत । समानता को लेकर वस्तु जिसके द्वारा ग्रहण की जाती है, उसका नाम उपमा है। यह उपमा ही औपम्य है। (से किं तं साहम्मोवणीए) हे भदन्त ! साधम्र्योनीत का क्या तात्पर्य है। उत्तर--(साहम्मोवणीए-तिविहे पणत्ते ) साधम्र्योपनीत तीन प्रकार का होता है। (तं जहा) जैसे (किंचिसाहम्मोवणीए, पायसाहम्मो वगीए, सवप्ताहम्मोवणीए) किश्चित् साधोपनीत, प्रायःसाधम्योंपनीत, और सर्वसाधम्योपनीत । (से कि तं किंचिसाहम्मोवणीए) हे भदन्त ! वह किश्चित् साधोपनीत क्या है ? (किंचिसाहम्मोवणीए) उत्तर--वह किश्चित् साधम्योपनीत इस प्रकार है । (जहा मंदरो तहा सरिसवो) जैप्सा मंदर है, वैसा सर्षप है । तात्पर्य इसका यह है कि किश्चित् साधम्र्योपनीत में कुछ २ समानता को लेकर उपमा दी जाती है, सो ऐसा कहा है कि जैसा मन्दर (मेरु) है वैसा सर्षप है, सो वणीए य) मे साध्यापनात, भी वैधभ्यापतात. समानताना साधारे જેના વડે વસ્તુ ગ્રહણ કરવામાં આવે છે તેનું નામ ઉપમા છે. આ ઉપમા १ मी५भ्य छे. (से कि तं साहम्मोवणीए) महत! साभ्यापनातन તાત્પર્ય શું છે? ___उत्तर-(साहम्मोवणी र-तिविहे पण्णत्ते) साभ्यापनातन १ प्रा। छे. (जहा) २ (किचिसाहम्मोवणीए, पायसाहम्मी वणीए, सव्वसाहम्मोवणीए) કિંચિત્ સાધઑપનત, પ્રાય:સાધર્મોપનીત, અને સર્વસાધર્મોપનીત __ (से किं तं किंचि साहम्मावणीए) 3 RE! यित् साधण्यापनात छ (किंचि साहम्मोवणीए).. उत्तर- यत् साधभ्योपनीत मा प्रमाणे छे. (जहा मंदरो तहा सरिसवो) रेवो भ४२ छे. तेव। स५५ छे. तात्ययमातुं ये छ वयित સાધચ્ચેપનીમાં કંઈક સમાનતાને લઈને ઉપમા આપવામાં આવે છે તો અત્રે આમ કહેવામાં આવ્યું છે કે “જે મદર (મેરુ) છે તે સર્વપ છે. For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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