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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २२३ उपमानप्रमाणनिरूपणम् गोष्पदयो यत्त्वम् , आदित्य खद्योतयोराकाशगामित्वमुद्योतकत्वं च, चन्द्रकुमु. दयोश्च शुक्लत्वं साधर्म्यम् । अथ प्रायःसाधम्योपनीतमाह -'से किं तं पायसहम्मोवणीए' इत्यादि । प्रायः अधिकावयवव्याप्त्या यत्साधम्य-सायं तेन उपनीतम् उपनयविषयीकृतं-पायःमाधोपनीतम् । तच्च-यथा गौस्तथा इसमें मंदर (मेरु) और सर्षप की गोलाई का लक्ष्य रखा गया है । इसी कारण इन दोनों में समानता कही गई है। (जहा सरिसवो तहा मंदरो) जैसा सर्षप होता है, वैसा मन्दर होता है इसको भी यही तात्पर्य है। इसी प्रकार (जहा समुद्दो तहां गोपयं जहा गोप्पयं तहा समुदो, जहा आइचो तहा खजोओ जहा खज्जोओ तहा आइच्चो, जहा चंदो तहा कुमुदो जहा कुमुदो तहा चंदो) इस सूत्रपाठ का भी तात्पर्य जानना चाहिये-इनमें समुद्र और गोष्पद (जल से भरा हुवा गाय का खुर) में जलवत्ता को लेकर, आदित्य और खद्योत (जूगुनू ) में आकाश गामित्व और उद्योतकता को लेकर, चन्द्र और कुमुद में शुक्लताको लेकर समानता प्रकट की है । (से तं किंचि साहम्मोवणीए) इस प्रकार यह किश्चित् साधम्योपनीत का स्वरूप है। (से किं तं पायसाहम्मोवजीए?) हे भदन्त ! प्रायासाधम्योपनीत का क्या तात्पर्य है । (पायसा. हम्मोवणीए) प्रायः साधोपनीत का तात्पर्य इस प्रकार से है(जहा गो तहा गवओ, जहा गवओ, तहा गो) जैसी गाय આમાં મંદિર (મેરુ) અને સર્ષની લાકૃતિને લક્ષમાં રાખીને ઉપમા આપવામાં આવી છે, આકારથી જ બન્નેમાં સમાનતા કહેવામાં આવી છે. (जहा सरिसवो तहा मंदरो) । सष५ डाय छे. तेव। म२ सय छे. भानु ५ तात्पर्य मा छे. मा २२ (जहा समुद्दो तहा गोप्पयं जहा गोप्पय तहा समुद्दो जहा आइचो, तहा खजोओ, जहा खज्जोओ तहा आइचो, जहा चंदो तहा कुमुदो, जहा कुमुदो तहा चंदो) या सूत्रपाइने। समल લેવું જોઈએ. આમાં સમુદ્ર ગેપદ (જલ પૂરિત ગાયની ખરી)માં જલવત્તાના આધારે આદિત્ય અને ખદ્યોત (આગિ)માં આકાશ ગામિત્વ અને ઉદ્યોતકતાને લઈને, ચન્દ્ર અને કુમુદમાં શુકલતાને લઈને સમાનતા પ્રકટ ४२वामा भावी छ. (से तं किंचि साहम्मोवणीए १) मा शत भGR. સાધમ્યપનીતનું સ્વરૂપ છે. (से कि त पायसाहम्मोवणीए) के महत ? प्राय:साभ्यापनातन तपय ४. छ. (पायसाहम्मोवणीए) प्राय:याभ्यापनातनुं तात्पर्य । For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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