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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९७ अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २२१ अनुमानप्रमाणनिरूपणम् तन्तवः पटस्थ, कारणं, न पटस्तन्तुकारणं, वीरणा कटस्य कारणं, न कटो वीरणा कारणं, मृदिण्डो घटस्य कारणं न घटो मृत्पिण्डकारणं । तदेतत् कारणेन । अथ किं तद् गुणेन ?, गुणेन-सुर्ण निकषेण, पुष्पं गन्धेन, लवणं रसेन, ढकालना सुनकर बैल का अनुमान करना, मयूर की वाणी सुनकर मयूर का अनुमान करना, हिनहिनाना सुनकर घोडे का अनुमान करना, हाथी का चिघाटना सुनकर या मार्ग में पतित उसकी बीट को देखकर हाथी का अनुमान करना, घनघनायित से रथ का अनुमान करना । (सेतं कज्जेणं) यह कार्य लिङ्ग से उत्पन्न हुआ शेषवत् अनुमान है । (से किं तं कारणेणं) हे भदन्त ! कारणरूप लिङ्ग से उत्पन्न हुआ शेषवत् अनुमान क्या है ? ( कारणेणं) कारण रूप लिङ्ग से उत्पन्न हुआ शेषवत् अनुमान इस प्रकार है - ( कारणेणं तंतवो पडल्स कारणं ण पडो तंतु कारणं वीरणा कडस्स कारणं, ण कडो वीरणा कारणं मि विंडो घडस कारणं, ण घडो मिखिंड कारणं-से तं कारणेणं) तंतु पट (कपड़ा) के कारण होते हैं, पट तंतु का कारण नहीं होता है, वीरणा- तृणविशेष-कट-चटाई के कारण होते हैं-चटाई वीरणा की कारण नहीं होती है । मृत्पिंड-मिट्टी-घट का कारण होता है-घट मृत्पिंड का कारण नहीं होता । यह कारणलिंग जन्य शेषवत् अनुमान है । (से किं तं गुणेणं) हे भदन्त ! गुगलिंग जन्य शेषवत् अनु ભેરીનું અનુમાન કરવુ, ખળાના શબ્દને સાંભળીને અળદનું અનુમાન કરવું.. મયૂરનીવાણી સાંભળીને મયૂરનું અનુમાન કરવું, હૃણવું સાંભળીને ઘેાડાનું અનુમાન કરવું, હાથીની ચીસ સાંભળીને અથવા તેા માગમાં પડેલ તેની લાદ જોઇને હાથીનુ અનુમાન કરવુ, ધનધનાયિત શબ્દ સાંભળીને રથનું અનુમાન કરવું. (सेत कज्जेणं) मा कार्य सिंगथी उत्पन्न थयेस शेषवत् अनुमान छे से किं त कारणे णं) हे लहन्त ! आरश्यसि गथी उत्पन्न थयेस शेषवत् अनुमान शु छे ? ( कारणे णं) १२५३५ सिंगथी उत्पन्न थयेव शेषवत् अनुमान या प्रभारी है. ( कारणेणं तंतवो पड़स्स कारणं ण पड़ो तंतु कारणं वीरणा कंडरस कारणं, ण कडो वीरणा कारणं मिपिडो घडस्स कारणं, ण घडो मिपिडकारण से तं कारणं) तंतु पट - (वस्त्र)ना अरा होय छे, पट तंतुनु र नहि. वीरणा तृष् विशेष-१८ (साइडी) ना अरशी होय छे, साहडी वीयानुअर होती थी. મૃત્ પિંડ-માટી–ઘટનું કારણ ડાય છે, ઘટ મૃતિપટનું કારણ નથી. આ शुसिंग भन्य शेषवत् अनुभात छे. (से कि त गुणेणं) डे लहन्त ! शुष्णु अ० ६३ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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