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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्रे तदेतत् पूर्ववत् । अथ किं तत् शेषवत् ? शेषवत् पञ्चविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-कार्येण, कारणेन, गुणेन, अवयवेन, आश्रयेण । अथ किं तत् कार्येण ? कार्येण-शङ्ख शब्देन, भेरी ताडितेन, वृषभं गजितेन, मयूरं के कारितेन, हयं हेपितेन, गजं गुलगुलायितेन, रथं घनघनायितेन । तदेतत् कार्येण । अथ किं तत् कारणेन ? कारणेनपुत्तं इत्यादि इसका भाव यह है-किसी माता का पुत्र याल्यावस्था से ही परदेश में चला गया था-रहते २ वहां वह तरुण हो गया । जब वह वापिस आया तो, उसको मां ने उसे किसी चिह्न को देखकर पहिचान लिया। (से तं पुत्ववं) इस प्रकार मह पूर्ववत् अनुमान है। (से तिं सेमवं) हे भदन्न शेषवत् अनुमान क्या है ? (सेसवं पंचविह पण्णत्तं) शेषवत् अनुमान पांच प्रकार का कहा गया है । (तं जहा) वे प्रकार ये हैं-(कज्जेणं कारणेणं गुणेणं अवयवेणं आमरण) कार्य, कारण, गुण अवयव, और आश्रय इन पांच से उत्पन्न हुआ अनुमान शेषवत् अनुमान है। (से किं तं कज्जेणं) कार्य से उत्पन्न हुआ शेषवत् अनुमान क्या है ? (कज्जेणं मखं सद्देणं, भेरि ताडिएणं वसभं ढक्किएणं, मोरं केकाइएणं, हयं हेसिएणं गयं गुलगुलाइ. एणं, रह घणघणाइएण) कार्य से उत्पन्न हुआ शेषवत् अनुमान इस प्रकार से है जैसे-शंख के शब्द को सुनकर शंख का अनुमान करना भेरी की आवाज सुनकर भेरी का अनुमान करना, बैल का ढकित २नु अामा मा०यु छे. (गाहा) ही 21 आथा छे. 'माया पुत्त' इत्यादि' આને ભાવ આ પ્રમાણે છે. કે કઈ માતાને પુત્ર બાલ્યાવસ્થામાં જ પરદેશમાં જતો રહ્યો હતે. પરદેશમાં જ તે તરૂણ થઈ ગયે જ્યારે તે પાછો श्या त्यारे भातास मिलना साधारे तने सभी धो (से तं पुववं) मा प्रमाणे मा पूर्ववत् अनुमान छे. (से कि सेसवं) 3 महत! शेषत् अनुमान छ १ (सेसवं पंचविहं पण्णत्त) शेषवत् अनुमान पाय प्रा२नु अपामा मा०यु छे. (तं जहा) ते प्रा। 24 प्रमाणे 2. (कज्जेणं कारणेणं गुणेणं अवयवेणं आम्रएणं) आय, , शुश, अवयव भने आश्रय मा पांय 43 अत्पन्न ये मनुमान शेषवत अनुमान छ (से कि तं कज्जेणे) यथा उत्पन्न थये शेषवत् मनुमान शु छ ? (कज्जेण संख, सद्देणं भेरि ताडिएण, वसभ ढक्किएण, मोरं, केकाइएणं, हय हेसिएण, गयं गुलगुलाइएण, रहं घणघणाइएणं) यथा उत्पन्न थये शेषरत् अनुमान । प्रमाण छ. २३ શંખના શબ્દને સાંભળીને શંખનું અનુમાન કરવું ભેરીના શબ્દને સાંભળીને For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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