SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्र पृथिवो नैरयिकाणां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थिति प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन सप्त सागरोपमाणि, उत्कर्षेण दश सागरोपमाणि । धूमप्रभापृथिवी नरयिकाणां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन दशसागरोपमागि, उत्कर्षेण सप्तदशसागरोपमाणि । तमः प्रमापृथिवी नैरयिकाणां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन सप्तदशसागरोपमाणि, उत्कर्षेण द्वाविनाम की तृतीय पृथिवी के नारकों की जघन्यस्थिति तीन सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति सातसागरोपम की कही गई है । (पंकप्पहापुढवीने. रइयाणं जहण्णेणं सत्तसागरोवमा, उक्कोसेणं दस सागरोवमाई) पंकप्रभा नामकी चतुर्थ पृथिवी के नारकों की जघन्य स्थिति सात सागरोपमकी और उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम को कही गई है । (धूमपहा पुढवी नेरयाणं जहन्नेणं दस सागरोचमाइं, उकोसेणं सत्सरससागरोवमाई) धूमप्रभा नामक पंचम पृथिवी के नारकों की जघन्यस्थिति दश सागरोपम की और उस्कृष्ट स्थिति १७ सतरह सागरोपमकी कही गई है। (तमपहा पुढची नेरइयाणं जहन्नेणं सत्तरससागरोयमाई उक्कोसेणं घावीस सागरोधमाई) तमाप्रभा नाम की छठी पृथिवी के नारकों की जघन्य स्थिति सत्तरह सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति २२, सागरोपम की कही गई है । (तमतमा पुहवी नेरइयाणं भंते केवइयं कालं ठिई पण्णता?) प्रश्न--तमस्तमा नामकी सातवों पृथिवी के नारकों की स्थिति हे भदन्त ! कितनी कही गई है ? કેની જઘન્ય સ્થિતિ ત્રણ સાગરોપમ જેટલી અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ સાત સાગरोपम २४ी ४ामा माकी छे. (पंकपहा पुढवी नेरइयाणं जहणेणं सत्त. सागरोवमाइं, उक कोसेणं दस सागरोवमाई) ५४मा नाम यतुर्थ पृथिवीना નારકેની જઘન્ય સ્થિતિ સાત સાગરેપમ ની અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ દશ સાગરે ५म रेमी वाम मावी छ. (धूम.पहा पुढया नेरइयाणं जहन्नेणं दस सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्तरसागरोत्रमाई) धूमला नाम: ५यम थि. વીના નારકેની જઘન્ય સ્થિતિ દશ સાગરે પમની અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૧૭ सागरेशम २८सी ४ामा सवी छ. (तमापहा पुढवी नेरइयाणं जहन्नेणं सत्तरससागरोवमाई उनकोसेणं बावीसं सागरोवमाई) तमामा नाम छी પૃથિવીન નારકની જઘન્ય સ્થિતિ ૧૭ સાગરોપમની અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ २२ सागरे।५५ रेसी 30मा मापी छ. (तमतमा पुढवी नेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता) For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy