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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०६ नैरयिकादीनां आयुपरिमाणनिरूपणम् २८५ एकं सागरोपमम् अन्तर्मुहानम् । शर्कराप्रभापृथिवी नैरपिकाणां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञमा ? गौतम ! जघन्येन एकं सागरोपपा, उत्कर्षेण त्रीणि सांगोपनाणि । एवं शेषपृथिवी वपि पृच्छा भणितव्या । वालुकमभापृथिवी नैरयिकाणां जघन्येन त्रीणि सागरोपमाणि, उत्कर्षेण सप्त सागरोपमाणि । पङ्कप्रभाहे भदन्त ! रत्नप्रभा पृथिवी में पर्यासावस्थापन्न नारकों की स्थिति कितनी कही गई है? उत्तर-(गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साई अतोमुत्तूणाई उक्कोसेणं एगं सागरोवमं अंतोमुहत्तोणं ) हे गौतम जघन्यसे अन्तर्मुहर्त कम दशहजार वर्ष को और उत्कृष्ट से अंतर्मुहर्त्त कम एक सागरोपम की कही गई है। (सकार पहापुढवीनेरइयाणं भंते ! केवायं कालं ठिई पण्णत्ता) हे भदन्न । शर्कराप्रभा नामकी जो दूसरी पृषिधी है, उसमें रहने वाले नारकों की स्थिति कितनी कही गई है? ___उत्तर-(गोयमा ! जहन्नेणं एगं सागरोवमं उक्कोसेणं तिणि सागरोवमाई) हे गौतम ! वितीयपृथिवी के नारकों की स्थिति जघन्य तो एक सागरोपम की और उत्कृष्ट तीन सागरोएम की कही गई है । (एवं सेसपुढवीसु वि पुच्छा माणि गव्वा) इसी प्रकार का प्रश्न अवशिष्ट पृथिवियों के विषय में भी जानना चाहिये-(वालुयपहापुढविनेरइयाणं जहण्णेणं तिणि सागरोवमाइं उक्कोलेणं सत्तसागरोत्रमाइं) बालुका પ્રથિવીમાં પર્યાપ્તક અવસ્થાવાળા નારકની સ્થિતિ કેટલી કહેવામાં આવી છે ? त्त२-(गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तोणाई उनकोसेणं एग सागरोवम अंतोमुत्तोणं), गौतम ! -५थी अतभुत रक्षा અલપ દશ હજાર વર્ષની અને ઉત્કૃષ્ટથી અસંખ્યાત મુહૂર્ત જેટલી અલ્પ એક सागरे।पमनी वामां भावी छे. (सक्करप्पहा पुढवी नेरइयाणां भंते ! केषडयं कालं ठिई पण्णत्ता) 3 महन्त ! शरामा नामनी ने भी पृथिवी छ તેમાં રહેનારા નારકની સ્થિતિ કેટલી કહેવામાં આવી છે? उत्तर-(गोयमा ! जहन्नणं एगं सागरोवमं उक्कोसेणं तिणि सागरोषमाइं) હે ગૌતમ! બીજી પૃથિવીને નારકેની સ્થિતિ જઘન્યથી તે એક સાગરેપમ सी भने छुट ! सामनेटसी अपामा मापी छे. (एवं सेस पुढवीसु वि पुच्छा भाणियव्वा) मा प्रमाणे प्रश्न पशिष्ट पृथिवीया विष ५९ सभा (बालुयपहा पुढवि नेरइयाणं जहण्णेणं तिणि सागः रोबमाई उकोरणं सत्त सागरोवम ई) वायु! नाम तृतीय, पृथिवीन ना२ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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