SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सू २०२ समयस्वरूपनिरूपणम् २३९ पुनः शिष्यो पृच्छति-यावताकालेन तेन तुन्नवायदारकेण उपरितने प्रक्ष्म छिन्नम् , स समयो भवति ? गुरुराइ-न भवति । कस्मात् ? यस्मात् अनन्तानां संघातानां= पक्षमसूक्षमावयवानामे परिणामरूपाणां समुदयसमितिसमागमेनसमुदायस्य सम्यक्संयोगेन एक पक्ष्म निष्पन्नं भवति । तत्रोपरितने संघाते अविसंघातितेअपृथक्कृतेऽधस्तनः संघातो न विसंघात्यते-पृथविक्रयते। उपरितनाधस्तनसंघात. समए ल भवइ) इसलिये वह समय नहीं हो सकता है। (एवं वयंत पण्णवयं चोयए एवं वपासी) इस प्रकार उत्तर देनेवाले गुरु जन से प्रश्न कर्ता शिष्य ने ऐसा पूछा कि (जेणं कालेणं तेणं तुण्णागदारएणं तस्स तंतुस्स उधरिल्ले पम्हे छिन्ने से समए भवह ?) तो क्या जितने समय में उस तुम्नामदारक ने उस तंतु के उपरितन रोम को छेदा है वह समय है ? ___उत्तर--(न भवइ) वह समय नहीं है, (कम्हा) क्यों नहीं है ? (जम्हा) क्योंकि (अणताणं संघायाणं समुदयसमिहसमागमेणं एगे पम्हे निष्फज्जह) अनंतसंघातों का-पक्ष्म सूक्ष्म अवययों का-जो समु. दयसमिति का एकपरिणामरूप संयोग है-उससे वह एक पक्ष्म निष्पन्न होता है । सो (उपरिल्ले संघाए अविसंघाइए हेडिल्ले संघाए न विसं. घाइजनह) जब तक ऊपर का संघात पृथक नहीं होगा तय तक नीचे का संघात पृथक् नहीं हो सकता । इस प्रकार यह मानना चाहिये कि से समए न भयद) भेटवा माटे ते समय या नही(एवं क्यंत पण्णवयं चोयए एवं पयासी) मा प्रभार उत्तर मापनार सुक्ने प्रश्न पत्ता शिष्ये माजतने प्रश्न या - (जेण कालेण तेण तुण्णागदारएण तस्स तंतुस्स उत्ररिल्ले पम्हे किन्ने से समय भवइ) ताशु २८९समयमा ते તુમ્નાકરારકે તે તંતુના ઉપરિતન રેમનું છેદન કર્યું છે તે સમય છે ? उत्तर-(न भवइ) ते समय नयी (कम्हा) भ नथी ? (जम्हा) भ. (अणताण संधायाण समुदयम िइसमागमेण एगे पम्हे निष्फज्जइ) सनत સંઘ તેના-પક્ષમ સૂફ અયના–જે સમુદાય સમિતિના એક પરિણામ રૂપ अयो। छ, तनधी ते मे ५६ नि याय छे. तो (वरिल्ले संधाए अविसंधाइए हे द्वेल्ले संघाए न विसंघाइज्जइ) या सुधी ७५२ने। सात ५५ થયું નથી ત્યાં સુધી નીચે સંઘાત પૃથક્ થઈ શકે જ નહીં. આ પ્રમાણે मा भान न (अण्णंमि काले उवरिल्ले संघाए विसंघाइजह For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy