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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० .. अनुयोगद्वारसूत्रे योर्विसंघातनकालो भिन्नः, अतः स सपयो न भवति । कस्तहि समयः ? इत्याहहे श्रमणायुष्मन् ! इतोऽपि च खलु मातरः स पयः प्रज्ञप्तः संघाविसंघातनकालादपि सूक्ष्म तरः सभयो बोध्य इत्यर्थः । ननु ययनन्तः परमाणुसंघातः पक्ष्म नियंते, ते संघाताश्च क्रमेणैव छियन्ते, तुः कस्य पक्ष्मणो विदारणेऽनन्ताः सम या व्यतियन्ति, एतच्चागमविरुद्धम् , आगमे हि-असंख्येथासु उत्सपिण्यवसपिणीषु असंख्येयसमयानामेव प्रतिपादनात् । उक्तं च(अण्णमिकाले उरिल्ले संघाए घिसंघाइजह अण्णमि काले हिछिल्ले संघाए विसंघाइज्जइ) ऊपर का संघात अन्यकाल में पृथक् हुआ है और नीचे का संघात अन्यकाल में पृथक् हुआ है। (तम्हा) इसलिये (से समए न भवइ) वह समय नहीं है । तो फिर समय क्या है ? उत्तर-(समणाउसे) हे श्रमणायुष्मन् ! (एत्तो वियणं सुष्टुमतराए समए पपणचे) इससे भी समय सूक्ष्मतर कहा गया है। अर्थात् संघात के विसंघातन काल से भी समय सूक्ष्मतर होता है ऐसा जानना चाहिये। शंका-यदि अनन्न परमाणु संघातों से एक पक्षन निष्पन्न होता है और वे संघात क्रमशः ही छिन्न होते हैं तो ऐसी मान्यता में ऐमी बात मानना चाहिये कि एक पक्ष्म के विदारण में अनन्त समय लग जाते हैं- । परन्तु ऐसी बात मानना आगम के विरुद्ध पड़ती है कयों कि असंख्यात उत्सपिणिया अवसपिणियों में असंख्यात समयही होते हैं ऐसा आगम में प्रतिपादन किया गया है। उक्तंच अस खेअण्णभि काले हिदिल्ले संघाए विसंघाइज्जइ) 6५२ सात मन्यसwi ५५५ श्येस छ भने नीयन सात मन्यसमा पृथ५ थयेछ. (तम्हा) सटमा माटे (से समए न भवइ) समय नबी तो पछी समय शु ? उत्तर-(समणा उसे) श्रमायुष्मन् ! (एचोऽवि य ण सुहुमतराए समए पणत्ते) सन २di पशु समय सूक्ष्मतर उपामा माया छ-मेट सघातना વિસંઘાતન કાલ કરતાં પણ સમય સૂક્ષમતર હોય છે. આમ જાણવું જોઈએ. શકા-જે અનંત પરમાણુ સંઘાત વડે એક પક્ષ્મ નિષ્પન્ન થાય છે અને સંઘાતે અનુક્રમે જ છિન્ન થાય છે તે એવી સ્થિતિમાં આ વાત માનવી જ જોઈએ કે એક પફમના વિદ્યારણમાં અનંત સમય લાગે છે. પરંતુ આ વાત આગમ વિરૂદ્ધ છે, કેમકે અસંખ્યાત ઉ સર્પિણીઓ, અવસર્પિણીએ. માં અસંખ્યાત સમયે જ હેય છે. એવું આગમમાં પ્રતિપાદન કરવામાં For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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