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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮ अनुयोगद्वारसूत्रे काया उपरितनस्तन्तुस्तेनतुनवायेन छिन्नः, स कालः समयो भवति ? गुरुराह-न भवति । कस्मान्न भवति ? यस्मात् संख्येयानां पक्ष्मणां = वन्तुमुक्ष्मावयवानां समुदयसमितिसमागमेन=द्वद्यादिसमुदायात्मकपक्ष्मणां सम्यक्संयोगेन एकस्तन्ह निष्पन्नो भवति । तत्र तन्त्रौ उपरितने पक्षमणि अच्छिन्ने अधस्तनं पक्ष्य छिन्नं न भवति । अन्यस्मिन् काले उपस्तिनं पक्ष्म छिन्नं भवति अन्यस्मिन् कालेऽधस्वनं पक्ष्म छिन्नं भवति, उभयोछेदकाले भिन्नः, अतः स समयो न भवति । भवह) जितने समय में उस दर्जा के दारक ने उस पहशाटिका के उपरितन तंतु का छेदन किया है तो क्या है भदन्त ! वह उपरितन तंतु छेदन काल समय है ? - उत्तर - ( न भवह) वह समय नहीं है । (कम्हा) क्यों नहीं है ? ( जम्हा संखेज्जाणं पम्हाणं समुदयसमिइसमागमेणं एंगे तंतु निष्फज्जह) क्योंकि संख्यात तन्तु सूक्ष्मावयवों- रुमों के समुदाय रूप समिति के संयोग से एक तन्तु निष्पन्न हुआ है । (उवरिल्ले पन्हे अच्छिणे हेट्ठिल्ले पन्हे न छिज्जह) सो जब तक ऊपर का रुँआँ न छिदा जायगा तब तक नीचे का रुँआ-रोम नहीं छिद सकता है। इसलिये यह मानना चाहिये कि (अण्गम्मिकाले उबरिल्ले पन्हे छिज्जद्द, अण्णंम काले तिले पम्हे छिज्जद) भिन्न समय में ऊपर का रोम छिदा है और दूसरे भिन्न समय में नीचे का रोम छिदा है । (नम्हा से अश्न उर्त्ता शिष्य प्रश्न १रे छे - (जेण कलेण तेण तुष्णागदारएण तीसे पडसाडया ए वा पट्ट साडिया ए उबरिल्ले तंतू छिष्णे से समए भवइ) भेटला સમયમાં તે દઈના દીકરાએ તે પટ શાટિકા અથવા પટ્ટ શાટિકાના ઉપરિતન તંતુનું છેદન કર્યુ” છે તે શું કે ભદત ! તે ઉપરિતન તંતુ છેદન કાલ સમય છે? उत्तर- ( न भवइ) ते सभय नथी ( कम्हा) ते समय उस नथी ? ( जम्हा संखेज्जा पहाणं समुदयस मिइसमागमेण एगे तंतू निष्फज्जइ) उभडे સખ્યાત તંતુ સૂક્ષ્માવયવેના સમુદાયરૂપ સમિતિના સ ંચાળથી તે એક તન્તુ निष्पन्न थयेस छे. (उरिल्ले पन्हे अण्णे हेट्ठिल्ले पन्हे न छिज्जइ) ते જ્યાં સુધી ઉપરના રેસા છેદાય નહી' ત્યાં લગી નીચેના રેસા છેદાય જ નહીં भेटला भाटे खायो या माती सेवु लेहये के ( अण्णम्मि काले उवरिल्ले पन्हे छिज्जइ, अण्णमि काळे हेट्ठिल्ले पन्हे छिज्जइ) भिन्न સમયમાં ઉપરના रेसो छेडायो भने जीन भिन्न समयमा नीयेने रेसो छेडायो छे. (तम्हा For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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