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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भनुयोगद्वारसूत्रे न्तरे स्थितानाम् निरयाणां नरकारापानाम् , निरयावलीनाम् नरकावासपङ्क्तीनां, निरयपस्तटानां-तेरेक्कारस नत्र सत्त पंच तिन्नि य तहेव एको य' छाया-त्रयो. दशैकादश नव सप्त पञ्च त्रयस्तथैवैकश्च-इत्यादि प्रोक्तानाम् , कल्पादि विमानप्रस्तटान्ताः प्रसिद्धाः, तेषाम् , टङ्गानाम् एकादिच्छिन्नपर्वतानाम् , कूटानाम् रत्नकूटादीनाम् , शैलानाम्-मुण्डपर्वतानाम् , शिखरिणाम् शिखरवतां पर्वतानाम् , माग्भाराणाम् ईषन्नतानां शिखरिणाम् , विजयादिवर्षधरपर्वतान्ताः प्रतीताः तेषाम् , वेलानाम् जलधिवेळाविषयभूमीनां तथा-वेदिकादिसमुद्रान्तानां च आयामविष्कम्भोचत्योद्वेधपरिक्षेपाः-आयामो-दैयम् विष्कम्भः विस्तारः, उच्च उत्तर-(एएणं पमाणंगुळेणं पुढवीकंडाणं) इस प्रमाणांगुल से रत्नप्रभा आदि पृथिवियों के रत्नकाण्डों का, (पायालाण) पातालकलशों का (भवणाणं) भवनपति देवों के आवासों का (भवनपस्थडाण) नरकों के प्रस्तटोंके अन्तर में सित भवन प्रस्तटों का (निरयाणं) नरकावासों का (निरयावलीणं) नरकावासों की पंक्तियो का (निरयपस्थडाणं) नरकों के १३, ११, ९, ७, ५, ३-१, इन प्रस्तटों का (कप्पाणं) सौधर्म आदि कल्पों का (विमाणाणं) उनके विमानों का (विमाणपत्थडाणं) विमानों के प्रस्तटों का (टकाणं) छिन्नटंकों का, (कूडाणं) रस्नकूट आदिकों का (सेलाणं) मुण्डपर्वतों का (सिहरीणं) शिखरशाली पर्वतों का (पन्भाराणं) कुछ कुछ नमित पर्वतों का (विजयाण) विजयोंका (वक्खाराणं) वक्षस्कारों का (वासाणं) वर्षों का (वासहराणं) वर्षधरों को (वासहरपव्वयाणं) वर्षधरपर्वतों का (वेलाणं) समुद्रतट की भूमियों का (वेड्याणं) वेदिकाओं का (दाराणं) उत्तर-(एएण पमाणगुलेण पुढवी कंडाण) मा प्रभागुिसथी रत्नप्रमा पोरे पृथ्वीमान २isiना (पायालाण) पातार aशाना (भवणाण) भवनपतिवान भावासोना (भवनपत्थडाण) नाना प्रस्तराना सतरमा स्थित भवन प्रस्ताना (निरयाण) ना२पासना (निरयावलीण) न२४पासानी पतमाना (नरयपत्थडाण) नरहना १३, ११, ६, ७, ५, 3, १ ॥ प्रस्तरोना (कप्पाण) सोयम वगेरे याना (विमाणाण') तमना विमानाना विमाणपत्थडाण) विमानाना प्रस्ताना (टंकाण) छिटोना (कमाण) २त्नकूट वगेरेना (सेलाण) भु ५वताना (सिहरीण') शिमशादी ५१ ताना (पन्भाराण) था। था। नमित पवताना (विजयाण) वियोना (वक्खाराण) वृक्षारोना (वासाण') वर्ष२ ताना (वासहराण) धराना (वासहरपवयाणं) १२ ताना (वेलाण) समुद्रतटनी भूभियाना (वेइयाण) ३६माना (दाराण) द्वाशना (समुदाण) समुद्राना (आयाम For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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