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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०० प्रमाणाङ्गुलनिरूपणम् २१७ वितस्तिरित्यादि योजनान्तं बोध्यम् । एतस्य प्रमाणागुलस्य प्रयोजनमभिधातु. माह-एतेनाङ्गुलप्रमाणेन पृथ्वीनां रत्नपभादीनां, काण्डानां-रत्नकाण्डानाम् , पातालकलशानां, भवनानां भवनपतिदेवावासानां, भवनमस्तटानां नरकप्रस्तटा. कहा है। सो सूत्रकार को ऐमा ही कहना चाहिये था-फिर मूल में "एगमेगस्स रणो' इत्यादि पाठ द्वारा जो प्रमाणांगुल का वर्णन किया है उसका कारण क्या है ?
उत्तर-शिष्य की बुद्धि 'काकिणीरत्न कंसा होता है ? इस परिज्ञान से विशद हो जावे-कि काकिणीरत्न ऐसा होता है-इस अभिप्राय से यह वर्णन किया गया है । (एएणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाई पादो, दुवालसंगुलोइं विहत्थी दो विहस्थीओ रयणी, दो रय. णीओ कुच्छी दो कुच्छीओ धणू, दो घणु सहसस्साई गाउयं, चत्तारिगाउयाई जोयण) इस अंगुलप्रमाण से छ अंगुलका एक पाद होता है। घोरह अंगुलों की एक वितस्ति होती है। दो वितस्ति की १ एक रस्नि-हाथ होता है। दोरस्नि की एक कुक्षि होती है। दो कुक्षियों का एक धनुष होता है। दो हजार धनुष का एक गव्यूत (कोस) होता है। चार गव्यूतों का एक योजन होता है। (एएणं पमाणगुलेण किं पोषण) इस प्रमाणांगुल से कौनसा प्रयोजन सिद्ध होता है?
मे तो पछी भूखमा " एगमेगस्स रण्णो इत्यादि" ५।४ 43 रे प्रभाgiગુવનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, તેનું કારણ શું?
ઉત્તર-શિષ્યની કાકિણી રત્ન કેવું હોય છે એ વિષયની જિજ્ઞાસાની પરિતૃપ્તિ થઈ જાય અને તે શિષ્ય “કાકિણી રત્ન કેવું હોય છે.” એ સંબંધમાં પૂર્ણજ્ઞાન મેળવી શકે તે માટે આ વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. (एएणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाई पादो, दुवालसंगुलाई विहत्थी दो विहत्थिओ रयणी, दो रयणीओ कुच्छी, दो कुच्छीओ धणू , दो धणुसहस्साई गाउयं चत्तारि गाउयाई जोयणं) भ शुख प्रम.एथी ६ शुलना में पाई 3.4 छ ૧૨ અંગુલની એક વિતસ્તિ હોય છે. બે વિતસ્તિઓની ૧ શનિ-હાથહોય છે. બે રાત્નિની એક કુક્ષિ હોય છે બે કુક્ષિઓનું એક ધનુષ હોય છે બે હજાર ધનુષ બરાબર એક ગભૂત (ગાઉ) હોય છે. ચાર ગભૂતનું એક यान डाय छे. (एएण पमाणंगुलेण किं पओयण) मा प्रमाणांसथी ध्या પ્રજનની સિદ્ધિ થાય છે?
अ० २८
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