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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १९९ वाणमंतरादीनां शरीरावगाहनानिरूपणम्२०७ धारणीया जघन्येन अंगुलस्य असंख्येयभागम् , उत्कर्पण तिस्रो रत्नयः, उत्तरबैंक्रिया यथा सौधर्मे । ग्रैवेषकदेवानां भदन्त ! कियन्महती शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता, गौतम! एक माधारणीयं शरीरकं प्रज्ञतम् , तत जघन्येन अंगुलस्य असंख्येय. भागम् उत्कर्षेण द्वे रस्नी । अनुतरोपपातिकदेवानां भदन्त ! कियन्महती शरीरामंकल्प के जैसा है। अर्थात् लाख योजनकी है। (आणयपाणय आरण अच्चुएसु वि भवधारणिजा जहण्ये गं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोलेणं लिणि रयणीओ) आनत, प्राणन,आरण और अच्युत इन कल्पों में भ पधारणीय शरीरावगाहना जघन्य से अंगुलके असं. ख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट से तीन रस्निप्रमाण है। (उत्तरवे उधिया जहा सोहम्मे) उत्सरवैक्रिरूप शरीरावगोहना यहां पर जैसी सौधर्म स्वर्ग में है वैसी है। अर्थात् लाखयोजन की है । (गेवेज्जगदेवाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता) हे भदन्त ! अवेयक देवों की शरीरावगाहना कितनी है ? उत्तर :-(गोयमा ! एगे भवधारगिज्जे सरीरगे पण्णत्ते) हे गौतम ! यहां पर एक भवधारणीयशरीर ही प्रज्ञप्त हुआ है। (से जहण्गेणं अंगुलस्स असंखेन्जहभागं उक्कोसेणं दुन्नि रयणीओ) वह जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और उस्कृष्ट से दो रस्निप्रमाण है। इसीलिये यहां पर उत्तरवैक्रियारूप शरीराઉત્તરક્રિયા રૂ૫ શરીરવગાહના સૌધર્મકલ્પની જેમ છે. એટલે કે લાખ योनि की छ. (आणययाणयआरणअच्चुएसु वि भवधारणिज्जा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं तिण्णि रयणीओ) मानत, प्रात, भार અને અય્યત આ કલ્પમાં ભવધારણીય શરીરવગાહને જઘન્યથી અંગુલના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પત્નિ (હાથ) પ્રમાણ છે. (उत्तरवेविया जहा सोहम्मे उत्तरवैठिया ३५ शरीराना सही सौधम वावी छ. मेले में साम योजनही छ. (गेवेज्जगदेवाण भंते ! के महालिया सीरोगाहणा पणत्ता) त ! धैवेय: हेवानी शरीरापाना ही छ ? उत्तर-(गोयमा ! एगे भवधारणिज्जे सरीर गे पण्णत्ते) गौतम ! मही ये साधारणीय शरीर ४ प्रज्ञा यस छे. (से जहण्णेणं अंगुलरस असंखेज्जा भागं उकोसेणं दुन्निरयणीओ) ते धन्यथी मखना सभ्यातमा भाग પ્રમાણ છે અને ઉત્કૃષ્ટથી બે રનિં પ્રમાણ છે એટલા માટે અહીં ઉત્તર For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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