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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ - ___ अनुयोगद्वारसूत्र वगाहना पज्ञप्ता ?, गौतम ! एकं भवधारणीयं शरीरकम् , तत् जघन्येन अंगुलस्य असंख्येयभागम् उन्कर्षेण एका रत्नी । तत् समासतः त्रिविधं प्रज्ञाम, तद्यथासूच्यालं प्रतरा शुलं घनाङ्गुलम् । एकागुलायता एकपदेशिका श्रेणी मूच्य. गुलम् , सूची मूच्या गुणिता प्रतरागुलं, प्रतरं मूच्या गुणितं धनाङ्गालम् । एतेषां सूच्याल प्रतरालघनाालानां कतरन् कतरेभ्यः अल्पं वा बहुकं वा तुल्यं वा विशेषाधिक वा। सर्वलोकं सूच्याङ्गुलं, प्रतराङ्गुलम् असंख्येयगुणं, धनाङ्गुलम् असंख्येयगुणम् । तदेतत् उत्सेधागुलम् ।।मु० १९९।। वगाहना नहीं है। (अणुत्तरोववाइयं देवाणं भंते ! के महालिया. सरीरोगाहणा पण्णत्ता) हे भदन्त ! अनुत्तर विमानों में कितनी शरीरावगाहना प्रज्ञप्त हुई है ? । .. उत्तर-(गोयमा ! एगे भरधारणिज्जे सरीरगे, से जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइमागं, उक्कोसेणं एगा रयणी) हे गौतम ! अनुत्तर विमानों में एक अवधारणीय शरीर होता है। वह जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट से एक रत्निप्रमाण है। उत्तरवैक्रियारूप शरीरावगाहना नहीं है । (से समाप्त मोलिविहे पण्णते) यह उत्सेधाजुल संक्षेप से तीन प्रकार का कहा गया है। (तं जहा) उसके वे प्रकार ये-(मूई अंगुले, परंगुळे घणंगले) सूगल प्रतराङ्गुल घना गुल । (एगंगुलायया एपएमिया सेढी सूई अंगुले सूई मूईए गुणिया पथरंगुले, पयरं मईए गुणियं घगंगुले) एक अंगुल लंबी, तथा एकप्रदेश या ३५ शरीरावाना नथी. (अणुत्तरोववाह देवाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाणा पणत्ता) हे मत ! मनुत्तर विमानाभाटी शरीरापासना પ્રજ્ઞપ્ત થયેલી છે? उत्तर--(गोयमा ! एगे भत्रधारणिज्जे सरीरगे, जहन्नेणं अंगुलम्स असंखेज्जइभाग, उनकोसेणं एगा रयणी) & गौतम अनुत्तरविमानामा सधारશીય શરીર હોય છે. તે જઘન્યથી અંગુલના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ છે અને ઉત્કૃષ્ટ એક પત્નિ પ્રમાણ છે. ઉત્તરક્રિયા રૂ૫ શરીરવાહના નથી. (से समास ओ तिविहे पण्णते) ! त्से, शुत सपथी पानी वामां भावी छे. (तंजहा) तेना के प्रा। मा प्रमाणे 2. (सूई अंगुले, पयरंगुले घगंगुले) सूरयस, प्रतiya, अने बनiya (एगंगुलायया एगपए सिया सेढी सूई अंगुले सूई सूईए गुणिया परंगुले, पयरं सूईए, गुणियं घणगुले) मे For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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