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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्रे यथा सनत्कुमारे तथा माहेन्द्रेऽपि भणिया । ब्रह्मलान्त योभधारणीया जघ न्येन अंगुलस्य असंख्येयभागम् उत्कर्षेण पश्चरायः, उत्तरक्रिया यथा सौधर्मे । महाशुक्र सहस्रारयोर्भवधारणीया जयन्येन अंगुलस्य असंख्येयभागम् उत्कर्षण चतस्रो रत्नयः, उत्तरक्रिया यथा सौधर्मे । आनतमाण तारणाच्युतेषु चतुर्णपि भवजहा सोहम्मे) उसर विक्रियारूपशरीरावगाहना वहां सौधर्मकल्प में कहे अनुसार एक लाख योजन की है। (जहा सणंकुमारे तहा माहिंदे वि माणियव्वा) सनत्कुमार के जैसा माहेन्द्रकल्प में भी छ रस्निप्रमाण अवगाहनाजानना चाहिये। (बमलंतगेसु भवधारणिज। जहन्नेणं अंगुलस्त असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं पंच रयणीओ) ब्रह्म और लान्तक इन दो कल्पों में भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट से पांच रस्नि प्रमाण है। (उत्तरवे उब्धिया जहा सोहम्मे) उत्तरवैक्रियारूप शरीरावगाहना यहां पर सौधर्मकल्प के जैसी है । अर्थात् जघन्य से अंगुल के संख्यातवे भाग, उत्कृष्ट से एक लाख योजन का है। (महासुक्कसहस्सारेलु भवधारणिज्जा जहण्णेणं अंगुलस्त असंखेनइभार्ग उक्कोसेणं चत्तारि रयणीओ) महाशुक्र और सहस्रार इन दो कल्पों में भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य से अंगुल के असं ख्यातवें भाग प्रमाग और उत्कृष्ट से चार रलिप्रमाण है । (उत्तर उब्धिया जहा सोहम्मे) तथा उत्तावैक्रिया रूप शरीरावगाहना सौधलिन प्रमाण छ. (उत्तरवे उब्विया जहा सोहम्मे) उत्तविया ३५ शरीरावा. ना त्यो सोध ८५नी भ में तम यौन सी छ. (जहा सणंकुमारे तहा माहिंदे वि भाणि यव्या) सनमारनी भ. मन्द्र४६५मा ५९ ६ नि प्रभाए समाना की मे. (बंभलंतगेसु भवधारणिज्जा जहन्नेणं अंगु. लस्स असंखेज्जइभ गं उक्कोरणं पंचरयणीओ) ब्रह्म सने त । मे કપમાં ભધારણીય શરીરવગાહના જઘન્યથી અંગુલના અસંખ્યાતમાં ભાગ प्रमाण भने ४थी पांय २नि प्रभा छे. (उत्तरवे उब्बिया जहा सोहम्मे) ઉત્તરક્રિયા રૂપ શરીરવગાહના અહીં સધમંકલ્પના જેવી છે એટલે કે જઘન્યથી અંગુલના સંખ્યામાં ભાગ ઉત્કૃષ્ટથી એક લાખ જનની છે. (महोसुक्के सहस्सारेसु भवधारणिज्जा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उकोसेणं चतारि रवणीओ) मा भने ससा२ मा मे ४६यामा साરહણીય શરીરવગાહના જઘન્યથી અંગુલના અસંખ્યાત ભાગ પ્રમાણ અને ५४थी यार २नि प्रमाण छ. (उत्तरवेउव्विया जहा सोहम्मे) तमा For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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