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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ अनुयोगद्वारसूत्रे पृथिवी में भवधारणीय अवगाहना जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण, और उत्कृष्ट से अढाई मो धनुषप्रमाण है । (उत्तरवेउ. विया जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइ भागं उक्कोसेणं पंचधणुसयाई) उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य से अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण, और उत्कृष्ट से पांचसौ धनुष की है। (तमतमाए पुढवीए नेरइयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता) तमस्तमा पृथिवी में नारकियों की हे भदन्त ! कितनी अवगाहना है ? (गोयमा! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! वहां दो प्रकार की अवगाहना कही गई है । (तं जहा) जैसे-(भवधारणिज्जाय उत्तरवेउविया य) १ भवधारणीय अव. गाहना और दूसरी उत्तरवैक्रिय अवगाहना । (तस्य णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जाभागं, कोसेणं पंचधनु सयाई ) भवधारणीय अवगाहना वहां जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण है और उत्कृष्ट से पांचसौ धनुष प्रमाण है । (तत्थ णं जा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जाभागं उक्कोसेणं धणुसहस्सं) तथा वहां जो उत्तरवैक्रिय अवगाहना है वह जघन्य से अंगुल के संख्यातवें भागप्रमाण है और उत्कृष्ट से १ हजार धनुष सेणं अड्डाइज्जाइ धणुसयाइ) तभ:प्रम नामनी ७४ी पृथिवीमा सपधा२य અવગાહના જઘન્યથી અંગુલના અસંખ્યાતમા ભાગ પ્રમાણ અને ઉત્કૃષ્ટથી २५० धनुष प्रमाण छ, (उत्तरवे उव्विया जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग उक्कोसेणं पंच धणुसयाई) उत्तरवैठिय मानधन्यथा शुखना सध्यातभा मा प्रमाण भने टथी ५८० धनुष २०ी छे (तमतमाए पुढवीए मेरयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता) 3 महत! तमस्तमा पृथिवीमा ना२श्रीमानी 2ी अाहना छ ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) 3 गौतम ! त्यां में प्रा२नी A418ना म मावी छ. (तंजहा) रेभ (भवधारणिज्जा य उत्तरवेउठिक्या य) मे अवधा२०ीय अपमान भने भी उत्तरवैठिय असा (तत्थ जे जा सा भवधारणिज्जा सा जहाणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उनकोसेणं पंच धणुसयाई) अवधारणीय साना त्यां જઘન્યથી અંગુલના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ છે અને ઉત્કૃષ્ટથી ૫૦૦ धनुष प्रभार छे. (तत्थ णं जा उत्तरवे उबिया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइ भागं उक्कोसेणं धणुसहस्स) तभन त्यां२ उत्तय माना , ते જઘન્યથી અંગુલના સંખ્યામાં ભાગ પ્રમાણ છે અને ઉત્કૃષ્ટથી ૧ હજાર For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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