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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १९६ नैरयिकाणां शरीरावगाहनानिरूपणम् १६३ शरीरावगाहना प्रमागमुक्त्वाऽसुरादीनां शरीरावगाहनाप्रमाणमाह-'असुरकुमाराणं भंते! इत्यारभ्य ' थणियकुमाराणं भाणियव्त्रं ' इत्यन्तेन सन्दर्भेण । व्याख्या निगदसिद्धा ।। सू० १९६ ॥ समस्त पृथिवियों के विषय में प्रश्न का उद्भावन कर लेना चाहिए - ( पंकपहा पुढवी भवधारणिज्जा जहण्जेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, कोसेणं वासfs aणूइं दो रयणीओ य) पंकप्रभा में भवधारणीय अवगाहना जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाग और उत्कृष्ट से बासठ धनुष प्रमाण दो रहिन हैं। (उत्तरवे उच्चिया जहणणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं पणवीसं धणुसयाई) उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य से अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट से १२५ धनुष प्रमाण है । ( धूमप्पहाए भवधारणिज्जा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जहभाग, उक्कोसे पणवीसं धणुसयाई ) धूमप्रभा में भवधारणीय अबगाहना जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट से १२५ धनुष प्रमाण है । ( उत्तरवेउच्त्रिया अंगुलस्त संखेज्जइ भागं उक्कोसेणं अड्डाइज्जाई धणुसयाई ) उत्तर वैक्रिय अवगाहना जघन्य से अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट से ढाई सौ २५० धनुष प्रमाण है । (तमाए भवधारणिज्जा जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइ भागं, उक्कोसेणं अड्डाइज्जाई घणुसयाई ) तमः प्रभा नाम की छठी આ પ્રમાણે સમસ્ત પ્રથિવીએના સબધમાં પ્રશ્નોની ઉદ્ભાવના કરી લેવી ये (पंक पहाए पुढवीए भवधारिणिज्जा जहणणेणं अंगुलरल असंखेज्जइ भागं, उक्केसेणं बाखधिणू दो रयणीओ य) प४अलाभां अवधारीय अवगाना જઘન્યથી 'ગુલના અસખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ ઉત્કૃષ્ટથી ૬૨ ધનુષ પ્રમાણુ गाने मे रलि छे. (उत्तरवेउच्त्रिया जहणेणं अंगुलरस संखेज्जइभागं उक्को सेन पणवीस घणुसयाई) उत्तरखैप्रिय अवगाहना धन्यथी अगुझना सभ्यातभा लाग प्रभाणु भने उत्सृष्टथी १२५ धनुष प्रमाणु छे. (धूमप्पहार भषधारजिज्जा जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभ गं, उ होसेणं पणवीसं धणुसयाई ) धूभ પ્રભામાં ભધારણીય અવગાહના જઘન્યથી અ‘ગુલના અસખ્યાતમા ભાગ प्रभाणुमने ष्टथी १२५ धनुष प्रमाणु छे. ( उत्तरवेउच्विया अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं अड्डाइज्जाई धणुसयाई) उत्तस्वैप्रिय व्यवजाना જઘન્યથી અ'ગુલના સખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણુ અને ઉત્કૃષ્ટથી ૨૫૦ ધનુષ प्रमाणु छे. (तमाए भवधारणिज्जा अद्दण्णेणं अंगुलस्य असंखेज्जइभागं उक्को - For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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