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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुमोमबन्द्रिका टीका सूत्र १४८ प्रकारान्तरेण त्रिनामनिरूपणम् ६७१ और “शिखरी" ऐसी होती है-गिरि शब्द वहां अजन्त पुल्लिा और शिखरिन् शब्द हलन्तपुल्लिङ्ग है। "विण्हू" यह शब्द ऊकारान्त पुल्लिङ्ग का है। इसकी संस्कृत छाया "विष्णु" ऐसी है। विष्णु शब्द यहाँ अजन्त पुल्लिङ्ग है। "दुमो" यह शब्द ओकारान्त पुल्लिङ्ग का है। इसकी छाया "द्रुमः" ऐसी है । यह शब्द वहां अकारान्त पुल्लिङ्ग है। स्त्रीलिङ्ग में प्राकृत आकारान्त माला शब्द है। संस्कृत छाया इसकी माला ही है। संस्कृत में भी यह शब्द अजन्त स्त्रीलिङ्ग ही है। प्राकृत भाषा में ओकारान्त शब्द स्त्रीलिङ्ग नहीं माना जाता है। जैसे देवों आदि शब्द । ओकारान्त शब्द सघ ही पुल्लिङ्ग है। लच्छी सिरी-कि जिनकी संस्कृ छाया लक्ष्मीः और श्री ऐसी होती है दोनों शब्द ईका. रान्त स्त्रीलिङ्ग हैं। ऊकारान्त जंबू बहू शब्द प्राकृत में स्त्रीलिङ्ग हैं। संस्कृत में भी ये दोनों स्त्रीलिङ्ग में हैं। प्राकृत भाषा में नपुंसकलिङ्ग की निशानी अंई उ है। जिनके अन्त में ये अंहं उं होते हैं वे नपुंसकलिङ्ग माने जाते हैं। जैसे अस्थि-अस्थि, महुं-मधु पीलुं-पीलु । इस प्रकार सस्त छया “शिखरी" थाय छ, शुभरातीमा त म त थाय छे “ विण्हू " 21 ५४ And yeant २७ ३५ छ. तनी सकृत छाया " विष्णु" थाय छे. “दुमो” मा ५४ सन्त पुगिना हाल ३५ छे. तेनी संत छाया “द्रुमः थाय छ तेन शुभरातीमा " वृक्ष" ४ छ सरतमा 'द्रुम' ५६ मन्तYean छे. भारान्त श्री पहनु हा "माला" ५६ छे. तेनी सस्त छाय। ५५५ मामा' જ થાય છે. સંસ્કૃતમાં પણ આ શબદ આકારાન્ત સ્ત્રીલિંગ જ છે પ્રાકતમાં આકારાન્ત શબ્દને સ્ત્રીલિંગવાળો ગણવામાં આવતું નથી જેમ કે “દેવ अघi ||रान्त ५हो yearय छे “ मिरी भने लच्छी " भागने પદે ઈરાન્ત સ્ત્રીલિંગનાં ઉદાહરણ છે તેમની સંસ્કૃત છાયા અનુક્રમે "श्री" भने “ लक्ष्मी" छ. संस्कृतमा ५५ मा मन्ने पी श्रीनिi ar पहा छ. ऊ रान्त " जंबू' भने “ बहू " मा म.ने प्राकृतभा श्रीति जना શબ્દો છે સંસ્કૃત ભાષામાં પણ આ બન્ને શબ્દો સ્ત્રીલિંગ જ છે. જે શબ્દોના अन्त्याक्षरे। “अं" '' " डाय छ, ते श नपुसलिमा डाय छ म है "अत्थिं " मा ५४ ईरान्त, " महुं" ५४ रान्त भने “पोलं" मा ५६ उशन्त भने 'धनं' मा ५४ अंश-नसलसना पही छे सकृतभा तमन। म न पाय भने “मधु", 'पीलु' For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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