SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८८ अनुयोगद्वारचे - से कि तं नो आगमओ दवाणुपुवी ? नो आगमओ दवाणुपुवी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-जाणयसरीरदव्वाणुपुठवी, भक्यिसरीरदवाणुपुब्बी, जाणयसरीरभवियसरीरवारिता दवाणुपुथ्वी। से कि तं जाणयसरीरदवाणुपुवी ? जाण्यसरीरदवाणुपुवी आणुपुच्ची पयस्थाहिगारजाणयस्स जं सरीरयं ववगयचुयचावियचत्तदेहं सेसं जहा दवावस्सए जाव से तं जाणयसरीरदवाणुपुवी। से कि तं भवियसरीरदन्वानुपूवी? भवियसरीरदवाणुपुष्वी जे जीवे जोणीजम्मणणिक्खंते मेसं जहा दवावस्सए जाव से त. भषियसरीरदब्वाणुपूथ्वी। " से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दवाणुपुत्री ? जाणवसरीरभवियसरीरवइरिता दवाणुपुवी दुविहा पण्णत्ता, संजहा-ओवणिहिया य अणोवणिहिया य। तत्थ णं जा सा ओवणिहिया सो ठ'पा । तस्थ गंजा सा अणोवणिहिया सा दुविहा पण्णता, त' जहा-नेगमववहाराणं, संगहस्स य ॥सू०७३॥ छाया-नामस्थापने गते। अथ काऽसौ द्रव्यानुपूर्वी १ द्रव्यानुपूर्वी द्विविधा प्रज्ञमा, तद्यथा-आगमतश्च नोआगमतश्च । ...अब सूत्रकार नामानुषी को निरूपण करते हैं "नाम ठवणाओ गयाओ" इत्यादि । ।सूत्र ७२॥ शब्दार्थ-(नामठवणाओ गयाओ) नामानुपूर्वी और स्थापनानुपूर्वी का स्वरूप नामावश्यक और स्थापनावश्यक के जैसा जानना चाहिये। (से किं હવે સૂત્રકાર નામાનુપૂર્વ નિરૂપણ કરે છે..... "नामठवणाो गयाओ' त्या हाथ-(नामठवणाभो गयाओ) नाभानु पूर्वा भने स्थापनानुषी २१३५ नाभापश्य भने स्थापना मायना हित २१३५ मनुसार १ Ar(से किं त दव्वाणुपुच्ची ?) 8 सन ! सानुकान १३५ ३'? . For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy