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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र ७३ नामाद्यानुपूर्वी निरूपणम्
२८७ पश्चात्-अनुपूर्व, तस्य भावः आनुपूर्वी-ज्यादिव तु संहतिः, आनुपूर्वी-अनुक्रमः परिपाटीत्येते शब्दाः समानार्थकाः। ज्यादिवस्तु संहतिरूपा एमाऽनुपी नामानुपूर्व्यादिभेदैर्दशविघा विज्ञेयेति ।।सू० ७२॥ - सम्प्रति नामाधानुपूर्वी निरूपयितुमाह। मूलम् -नाम ठवणाओ गयाओ।
से कि तं दवाणुपुव्वी ? दव्वाणुपुठवी दुविहा पण्णत्ता, त. जहा-आगमओ य नोआगमओ य। ___ से कि त आगमओ दवाणुपुष्वी जस्स गं आणूपुचित्ति पयं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं जाव नो अणुप्पेहाए, कहा? अणुवओगो दध्वमिति कटु । णेगमस्स गं. एगो अणुवउसो आगमओ एगा दव्वाणुपुठवी जाव कम्हा ? जइ जाणए अणुवउसे न भवइ जइ अणुवउत्ते जाणए न भवइ तम्हा णथिआगमओ दव्वाणुपुव्वी। से त आगमओ दव्वाणुपुठवी। वाची शब्द हैं। पूर्वस्य अनु अनुपूर्व-पूर्व के पीछे ऐसा अनुपूर्व शब्द का अर्थ होता है। अनुपूर्व का जो भाव है वह आनुपूर्वी हैं। अर्थात् तीन आदि वस्तुओं का जो समुदाय हैं वह आनुपूर्वी है। आनुपूर्वी अनुक्रम, परिपाटी ये सब आनुपूर्वी के पर्यायवाची शब्द हैं । तीन आदि वस्तुओं की संहति रूप यह आनुपूर्वी पूर्वोक्त प्रकार से दश भेदवाली है ऐसा जानना चाहिये । ॥७२॥ सानुपूवा, (उकित्तणाणुपुव्वी) (६) नानुली, (गणणाणुपुब्धी) (७) मनानुभूती', (संठाणानुपुवी) (८) सथानानुभूती (सामायारी आणुपुव्वी) (द) समायार्यानुषी माने (भावाणुपुच्ची) (१०) झापानुपूी.
पू', प्रथम म मा मात्र पर्यायवाची शो छ. "पूर्वस्य अनु अनुपूर्व" "पू (प्रथम)नी पा७॥", अव! मनुपूर्व Awt A4 पाय छ. मा અનુપૂર્વને જે ભાવ છે તેનું નામ અનુપૂવી છે. એટલે કે આદિ વસ્તુઓને જે સમુદાય છે તેનું નામ આનુપૂવી છે. આનુપૂવી, અનુક્રમ અને પરિપાટી, આ ત્રણે આપવના પર્યાયવાચી શબ્દો છે. ત્રણ આદિ વસ્તુઓના સમૂહરૂપ આ આપવી પકત દસ ભેટવાળી કહી છે, એમ સમજવું. પાસ કરા
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