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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योग और साधना ही एक कागज की चिट पर लिखा था, कि जो उम्मीदवार मोर्स की आवाज सुनकर . अन्दर आ जावे, अपना नाम इस चयन पत्र में भर ले और अपनी नियुक्ति इस रिक्त स्थान पर हुई समझे। इसलिए मैंने इस नियुक्ति पत्र में अब अपना नाम भर दिया है, अब आप चाहें तो अपने-अपने घर जा सकते हैं।" जिस प्रकार से हमारा चौकानापन इस बाहरी संसार में हमें सफलता दलाता हैं, ठीक उसी प्रकार इस आध्यात्म के मार्ग पर भी हमें अपनी साधना में रत् होते समय अपना होश, ध्यानपूर्वक जागृत रखना चाहिये, जिसके कारण से हम अपनी साधना के दौरान आने वाले विघ्नों से चाहे वे मानसिक हों, शारीरिक हों अथवा सांसरिक हों बचे रह सकेंगे। क्योंकि इस मार्ग पर चलते-चलते कब किस तरह की परिस्थितियों का सामना हमें करना पड़ सकता हैं, इसलिये आध्यात्म की प्रार्थना में उतरने से पहले इन तथ्य की बातों को सबसे प्रथम सावधानी के रूप में जान लेना निहायत ही जरूरी है । नहीं तो हम अपनी मंजिल की झलक पाकर . भी चूक जाते है। जन्मों-जन्मों से ठीक इसी प्रकार ही तो चूकते आये है, और हमेशा असफल होते रहे है । ऐसा होना स्वाभाविक भी हैं, क्योंकि हमारी सामना जब भलीभूत होने को ही होती है तब केवल इतना ही होता है कि हमारे मन के. स्तर पर कुछ विशेष तंरगें महसूस होने लगती है। अथवा हमारा मन तब तक एक अच्छा रिसिवर बन जाता है, और उनका अयं निकाल कर तथा मस्तिष्क का उपयोग करके (अपनी योग्यता के अनुसार) उनको नाम्दों में परिवर्तित करता है। इन मानसिक तरंगों को किसी को मरा नहीं पढ़ा जा सकता है। इसलिमे ही हमें स्वयं इन मानसिक तरंगों की लिपि को सामना होता है, भ नि भी नही समय पारे।-opmene स्वनिगमानना कफिनकार को इपरथान इस समय उलझा है, उसे इनकार की बातों से सतन्य करत नहीं तो हमारे मन को एकाग्रता गहो पायेगी, और कि एकापता के द्वारा ही हम इस प्रकृति की भाषा को पढ़ना सीखते हैं इसलिए पैसे-जैसे हम अपने आप में एक For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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