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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha गुरू वह है जो होश जगाए, जागृति लाए, मार्ग दिखाए ८७ होते जाते है । वैसे-वैसे हमें उसकी झलक मिलना शुरू होती जाती है। अभी तक हमारा मन जो कि बाहरी सांसारिक बातों के राग रंग में मस्त रहकर अपना समय बर्बाद कर रहा था, वही अब हमारे अन्दर की चेतना (अचेतन मन) पर उठती हई तरंगों को पकड़ने लगता है । (जिनको शब्द रूप में हमारा मस्तिष्क परिवर्तन कर देता है जिसके कारण से अचेतन की चीज चेतन मन पर आकर प्रकट होने लगती है। प्रारम्भ में जिस प्रकार बालक लिखना सीखते समय गलत और सही दोनों प्रकार से लिखता है लेकिन बाद में वह अपने विषय का कालीदास बन जाता हैं, ठीक उसी प्रकार इस अध्यात्म में भी शुरू-शुरू में साधक किसी बात का गलत अर्थ भी निकाल सकता है अथवा यह भी हो सकता है वह किसी बात का कोई अर्थ ही नहीं निकाल सके, लेकिन वर्षों एकाग्रता एवं लग्न पूर्वक की गई साधना के द्वारा, उन मानसिक संकेतों को जानने में साधक का मस्तिष्क सिद्धहस्तता प्राप्त कर ही लेता है । तब ही हमारी अन्तश्चेतना और हमारे मस्तिष्क में सामंजस्य बैठ पाता है । इसी महत्वपूर्ण अवस्था को दूसरे शब्दों में हम अचेतन के सूक्ष्म स्वरूप को मस्कि के बारा स्थूल स्वरूप प्रदान करना कहते है। यह बात तो हुई अभी तक केवल अपने विचारों तक की; जब कि सिद्ध योगी तो अपने साधना की शक्ति के इसी स्वरूप के द्वारा अपने सामने की किसी स्सुल वस्तु में उसके छिपे हुये सूक्ष्म स्वरूप को भी घेखते-देखते प्रगट कर देते है। जैसे भगवान बुद्ध ने बाम की गुठली के ऊपर अपने हार शेने से ही उस गुठली में है पोचा निकाल दिया था। पर तक यह गुठली. नब सम्पर्क में नहीं पानी पी सब-कबह बीपः सारूम ही तोबी। जिसको सनी उसले स्कुल सल में उसको पड़ ही तो समझ रहे थे लेकिन पुत्र ने उस गुरुनी रेलले सुक्ष्म साल को धानकर, नी तरफ से बार-बार देकर पहले गोल मातरित कर दिया। पाक की रही अवस्था उसकी साधना की सफलता सीढ़ी होती है। लेकिन इस स्थान प्राप्त करते करते तो शाबर कई बाम लेने पड़ते ही होंगे अगा वपनी कायाकल्प करके अपनी उम्र बढ़ानी पड़ती होगी। और हमें यहाँ केवल शुरू-शुरू की साधना पदिति पर विचार करना है, जो कठिन दिखते हुये भी काफी सरल है । आध्यात्म विषय के धुरन्धर पस्ता एवं विद्वान आचार्य रजनीश ने For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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