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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिगुणातीत अवस्था का बोध उसने इस टंकी में डाला था, फिर गलती कहाँ थी उसकी समझ में नहीं आ रहा था । जब हर तरफ से सोच विचार कर थक गया, और कोई भी हल इस समस्या का नहीं निकल सका । तत्र अन्त में वह अपनी किस्मत को कोसने लगा, और कहने लगा कि अपनी किस्मत ही खराब हैं करते कुछ हैं और होता कुछ है । डाली गोचनी थी और निकल रहे हैं गेहूँ । For Private And Personal Use Only ६१ ठीक यही स्थिति हमारी और हमारे कर्मों की है। पिछले जन्मों में हमने क्या-क्या किया है | हमारी याददाश्त में नहीं है । कैसे-कैसे कर्म हमारे पिछले अनन्त जन्मों के बीज के रूप में हमारे अचेतन मन पर जमा हैं, हमें कुछ भी पता नहीं है और न ही कोई तरीका हमारे पास मौजूद है, जिसके द्वारा हम पिछली बातों को उघाड़कर अपनी याददाश्त में ले आयें । इस जन्म की तमाम बातों का हिसाब तो हमें पता रहता है । जिसको अपनी याददाश्त में लाने के पश्चात हम पाते हैं कि हमने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया, किसी का माल नहीं चुराया, मन्दिरों में दर्शन करने सुबह शाम जाते रहे हैं, महीने में एक बार सत्यनारायण भगवान की कथा भी कराते रहे हैं । द्वार पर आये किसी भिखारी को भी खाली झोली नहीं लौटाया है । घर पर आये अतिथि का भी सत्कार पूर्ण श्रद्धा से करते हैं । करते तो हम अच्छा हैं लेकिन फल हमें बुरा प्राप्त होता है। इसी कारण से दिल में इतनी घबराहट होती है और ऐसा लगने लगता है कि उस परम पिता ने हमारी तरफ से आँखें ही बन्द कर रखी हैं। जबकि हमारा पड़ौसी इतना दुष्ट है, उसमें तो पड़ीसियों जैसी भावना तक नहीं है । जब तब अपने अगल-बगल वालों से लड़ता रहता है । दुनियां भर के जितने दुष्कर्म हैं उन्हें वह करता है। इतने सबके बावजूद भी उसके छक्के पंजे बढ़ते ही जाते हैं । लक्ष्मी मैया भी उसी के ऊपर कृपा किये रहती है । ऊपर से वह इतना कमीना और है, वह हमारी खिल्ली और उड़ाता है । तब नहीं आयेगा या इतना सब सहन करने के पश्चात क्या हम विचलित नहीं हो जायेंगे । अवश्य ही हो जावेंगे, सब धर्म कर्म छूट जावेगा । हम भी सत्कर्मों से हटकर दुष्कर्मों को करने लग जावेंगे । और न जाने कितने-कितने लोग ऐसा करने लग भी जाते हैं। ठीक इसी मनोदशा को समझने के लिए तथा इसी स्थिति से उबारने के लिए हीं कृष्ण एक स्तम्भ की भाँति हम सब सांसारियों से कह रहे हैं कि तू कर्म करता जा, फल की इच्छा मत कर । हमें
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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