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योग और साधना
किनारे से दूसरे किनारे तक हम ढूंढ-ढूंढ कर भी थक जायेंगे लेकिन एक जैसी स्थिति का दूसरा मन इस दुनियां में नहीं ढूंढ़ सकेंगे । इसलिए भी परिणामों में परिवर्तन आना स्वाभाविक है |
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हम अपने स्वभाव वश चाहते यह हैं कि, जब हम कर्म एक जैसे कर रहे हैं तब हमें फल भी एक जैसे प्राप्त होने चाहिये। जो कि बिलकुल असम्भव ही तो हैं । इस प्रकार ऐसी स्थिति में हमें हमारे कर्मों द्वारा जो फल हमें प्राप्त होते हैं उनमें हमारे संस्कारों का भी बहुत बड़ा हिस्सा शामिल बड़ा कारण है एक कर्म से अनन्य प्रकार के फलों के को बहुत सरल करने की वजह से कृष्ण ने कहा है कि मतकर ।"
होता है । और यही सबसे प्राप्त होने का । इसी बात "तू कर्म कर फल की चिन्ता
घर पर पहले से
हमारे यहाँ गावों में अनाज के भण्डारण के लिए अपने घरों में मिट्टी की कोठी बनाते हैं । आजकल तो उसी डिजाइन की लोहे की चद्दरों की बनने लग गयी हैं । इस प्रकार की टंकियों में अनाज को इनके ऊपर वाले बड़े मुंह से भर देते हैं । और जब जरूरत के समय अनाज निकालना होता है, तब उसके छोटे ढक्कनदार मुंह से निकाल लेते हैं । एक बेहद भुलक्कड़ किस्म का व्यक्ति, जिसको 'सुबह की बात शाम को याद नहीं रहती थी, और शाम की बात सुबह याद नहीं रहती थी, ऐसी ही एक टंकी को बाजार से खरीदकर अपने घर ले आया । खरीदा हुआ गेहूँ उसने उसमें भर दिया । कुछ दिन बाद जब उसके पास से पिसा हुआ आटा समाप्त हो गया तो उसने सोचा कि अनाज लाना पड़ेगा, उसे टंकी में गेहूँ की याददाश्त ही नहीं रही । वह बाजार गया और वहाँ से जैसा कि उस समय उसके मन ने चाहा, गेहूँ और चना मिली हुई गोचनी खरीदी, और घर लाकर उसने अपनी उसी टंको में डाल दी। बाद में जब आटा पिसाने के लिए नीचे वाले द्वार से गोचनी पीपे में भरने के लिए ढक्कन खोला, तो वह बड़े भारी आश्चर्य में पड़ गया 1 अरे, यह क्या हुआ ? मैंने इस टंकी में डाली तो गोचनी थी ये गेहूँ क्यों निकल रहे हैं । इस गोचनी में से चना कैसे गायब हो गए। वह बड़ी उलझन में पड़ गया । उसने अपने दिमाग पर बहुत जोर डाला, अनाज वाले दुकानदार का बिल भी देखा । कहीं कोई गलती नहीं दिखाई दे रही थी। बिल पर भी गोची लिखी हुई थी, इसके साथ ही उसने बड़ी उमंग से गोचनी खरीदी भी थी। विस
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