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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६२ योग और साधना फल का हमारा अधिकार तो है लेकिन अभी हमें यह तो पता नहीं है, कि कल की परिस्थितियों में हमारे पूर्व के संचित कौन से संस्कार अब अवतरित होने वाले हैं या हो रहे हैं । अभी हमने जो सत्कर्म किये हैं वे तो तब ही निकल कर आवेगे, जब पहले के संचित तमाम अच्छे बुरे कर्म समाप्त हो जावेगे । ऊपर की बाद में डाली हुई गोचनी तो तब ही निकलना शुरू करेगी जब तक नीचे के हिस्से में पहले से पड़े हुए गेहूँ, समाप्त नहीं हो जाते हैं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चार वेद छः शास्त्र में, बात लिखी हैं दोय । दुख दोने दुख होत है, सुख दीने सुख होय ।। इसलिए यह बात हमेशा ध्यान रखें हमारा कोई भी कर्म निष्फल नहीं रहता है | चाहे वह अच्छा हो या बुरा ? हमारा फल की तरफ ध्यान हमें अपने पथ पर निरन्तर अविचलित हुए तभी सम्भव हो सकेगा जब हम प्रत्येक कर्म को करने प्रति आशान्वित होकर इन्तजार नहीं करते । जब तक होता है, तब तक कर्म में भी हम पूर्ण मनोयोग से केन्द्रित नहीं हो पाते । इसलिए हम सम्पूर्ण क्षमता के साथ अपनी प्रार्थना की साधना में लगे रहें न कि उसकी प्राप्ति में । चलते रहना है | लेकिन यह के पश्चात उसके परिणाम के इसके अलावा जो बात खास तौर से साधक के लिए, विशेष बात भगवान कही है वह यह है कि तू मुझको ही भज और उसके बाद जो कुछ भी तुझे प्राप्त हो, उसे भी तू अपने पास मत रख, उसे भी मेरे लिए ही समर्पित कर दे । जितनी कठिन बात पहली थी, उससे भी ज्यादा यह बात कठिन हो गई । एक तो साधना की, इतनी कष्टप्रद एवं कठिन प्रक्रिया । (जिसके अन्तर्गत अपने आप को समाप्त करके यानि समुत्व भाव सहित तपश्चर्या करके, बड़ी ही मुश्किलों से जूझते रहने के पश्चात थोड़ी सी सिद्धियों का प्राप्त होना) दूसरे यह कि उन्हें भी मैं अपने स्तेमाल के लिए न रखूं। उन्हें भी परमात्मा के लिए भेंट कर दूं । कैसी विचित्र बात है । कोई हजारों लाखों साधकों में से किसी एक को सफलता मिलती है | अब अपनी मंजिल पर पहुँचकर जब आनन्दतिरेक के क्षण हमैं आने For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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