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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेतन मन से अचेतन मन पर पहुँचने का फल ही सिद्धियाँ कैसे विराजमान हो सकती हैं । यही कारण है कि योग के साधकों को शुद्ध एवं सात्विक आहार पर विशेष ध्यान दिलाया गया है । ५५ कुछ लोग अपनी इच्छानुसार खाते पीते हुए भी योग साधते हुए देखे जाते हैं। शुरू-शुरू में उनको कोई विशेष परेशानी नहीं होगी । लेकिन जैसे-जैसे वह अपनी साधना की गहराई में उतरते जावेंगे उनको खान-पान की महत्ता अपने आप समझने में आ जाती है । यदि इस प्रकार के साधक योग की साधना में लगे रहे तो यह निश्चय ही समझना या तो उनकी साधना का मार्ग अबरुद्ध हो जाएगा अथवा वे अपनी आदतों में आमूल चूल परिवर्तन कर लेंगे । अक्सर देखने में आया है, कि लोग व्यर्थ की चीजों को ही छोड़ देते हैं, योग साधना की तुलना में। क्योंकि उनको तब तक योग का स्वाद लग चुका होता है अथवा इस तथाकथित खान-पान की व्यर्थता का पता चल चुका होता है। जिसके कारण उनकी इच्छा शक्ति इतनी बलवान हो चुकी होती है कि वे अपनी रसनेन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ही लेते हैं । बहुत से साधक इन रसनेन्द्रियों को सिद्ध करने के लिए अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करके अपनी परख करते हैं। अन्य कुछ बिना भोजन के निराहार रहकर अपनी स्थिति पर संयम कर लेते । इसी श्रृंखला में कुछ लोग जो पहले रास रंग में व्यस्त रहते थे या उतेजित संगीत में अपने आपको विभोर रखते थे उसके विपरीत वे अब मौन रहकर अपने आपको पात्र बनाने का अभ्यास करते हैं । इसी प्रकार जिन्हें हमेशा किसी न किसी के साथ रहने की आदत रहती थी और जिन्हें प्रेमीजन के बिना एक-एक क्षण काटने को दौड़ता था वे ही लोग अब एकांत के प्रेम में पड़ते देखे जाते हैं । बियाबान जंगलों में, पर्वतों की कंदराओं में, गर्भ गृहों अथवा अन्य किसी प्रकार की गुफाओं में एकांत की साधना में ऐसे ही साधक तल्लीन मिलते हैं | यहाँ इस एकांत शब्द को भी ठीक से समझ लें । For Private And Personal Use Only "कुछ लोग अकेले पन को ही एकांत समझ लेते हैं जबकि अकेले का अर्थ होता है जहाँ हमारे सिवाय और कोई नहीं है । इसलिए अकेलापन काटने को दौड़ता है जबकि एकांत शब्द का अर्थ है एक का भी अन्त हो जाना । जहाँ आपके रहते हुए भी आप वहाँ नहीं रहते यही स्थिति एकांत की होती है और जब आप वहाँ हैं ही नहीं तब अकेलेपन की पीड़ा भी कौन सहेगा अथवा किससे होगी ।
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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