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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Ah Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ योग और साधना स्वस्थ एवं निरोगी शरीर की पूर्ति हमें पहले करनी ही होगी। जो अभी शारीरिक रूप से रुग्ण हैं वे लोग इस मार्ग के यात्री नहीं हो सकते । इस कारण से ही बार-२ और समझा समझा कर अनन्य तरीकों से सात्विक आहार और योगासनों द्वारा प्रदत्त व्यायाम पर जोर दिया गया है। कई लोग अपनी विशाल लम्बी-चौड़ी एवं मोटी देह को स्वस्थ शरीर मान लेते हैं जबकि मोटापा तो एक रोग ही है । यदि हमें प्राणायाम करने की तैयारी में लगना है तो शरीर का भारीपन तो चलेगा ही नहीं इसलिए हमें हल्का एवं तीक्ष्णता से मुक्त भोजन करना चाहिए, जिससे शरीर में कोष्ठ बद्धता नहीं रहे । क्योंकि शरीर में भारीपन रहने से हमारी नाड़ियों पर भारीपन रहता है । नाड़ियों का भारीपन ही हमारी साधना में बाधा उपस्थित करता है । प्राणायाम करते समय हम अपनी स्वांस के द्वारा बहुत सारा कार्य इन नाड़ियों पर ही करते हैं । प्रारम्भ में यह कार्य असम्भव सा ही लगता है। लेकिन यह असम्भव न हो कर कठिन अवश्य है । इसलिए ही तो शान्त मन तथा धीरे-धीरे अभ्यास करने को कहा जाता है । इस समस्त साधना के दौरान हमें केवल सांसारिक परेशानियाँ ही नहीं बल्कि हमें अपने अन्दर की मानसिक परेशानियां भी झेलनी पड़ती हैं क्योंकि इस रास्ते के द्वारा हम बर्हिगमन नहीं करते । बल्कि यात्रा शुरू करते हैं अन्तगमन की । दूसरे शब्दों में बाहरी स्थूल मन से यात्रा शुरू करके अन्दर के सूक्ष्म अचेतन मन की ओर जाते हैं। जिस प्रकार हमारे शरीर का भारीपन यौगिक क्रियाओं में बाधा बनता है इसी प्रकार ही हमारी मानसिक तीक्ष्णता या रुग्णता साधना की आन्तरिक क्रियाओं में बाधा बनती है। क्योंकि तीक्ष्ण वस्तुओं के सेवन से हमारे खून पर, खून से मस्तिष्क पर उनकी तीक्ष्णता का असर होता है। चाहे उनमें लाल मिर्च हो, गर्म मसाला हो या शराब । इस प्रकार की तमाम वस्तुएँ हमारे खून में तीक्ष्णता लाकर हमारी मानसिक शान्ति को भंग करती हैं। जिसके कारण हम में क्रोध या तमोगुण की वृद्धि होती है। मांस-मछली का भोजन करने से हमारे शरीर में भारीपन की बढ़ोतरी होती है, जिसके कारण आलस्य या रजोगुण का प्रभाव हमारे मन मस्तिष्क पर बढ़ता है । जिसकी वजह से हमारी चपलता एवं स्फूर्ति का नाश होता है, और जहाँ स्फूति की कमी हो और क्रोध की अधिकता हो वहाँ शान्ति या सात्विक वृत्तियाँ For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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