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योग और साधना
ऐसी एकांत की अवस्था में ही साधक के मन में शान्ति आकर विराजती है । लेकिन शुरू में चूंकि यह अनुभव हमारे लिए नया-नया प्राप्त हुआ अनुभव होता है इसलिए एक बार तो यह एकांत की गह्न शान्ति भी भय का कारण बनती है । क्योंकि इस अवस्था में हमें पहली बार अपने स्वयं की रिक्तता का अनुभव होता है जिसकी वजह से हमारे मन के अहम् को चोट लगती है। लेकिन धीरे-धीरे हम अपने अभ्यास के द्वारा इस एकांत की शान्ति की गहनता को अंगीकार करना सीख ही जाते हैं।
जैसे ही हम अपने हृदय में इस गहनता को अंगीकार कर लेते हैं उसी क्षण से हमारे लिए प्रकृति का खजाना हाथ लगने की सम्भावना प्रबल हो जाती है । ध्यान रखना ? खजाना हाथ लगता नहीं केवल सम्भावना होती है हाँ कुछ-कुछ तरंगें उधर से आती हुई हमें आभाषित होती हैं। प्रथम अवस्था में यह तरंगें भी हमें डांवाडोल कर देती हैं । क्योंकि अभी तक तो हम चेतन मन के द्वारा बाहरी स्थूल सांसारिक क्रियाओं में लगे थे हमें अपने अन्र्तमन या अचेतन मन में झांकने की फुर्सत कहाँ थी लेकिन जैसे ही हम चेतन मन से अचेतन मन की ओर जाने लगते हैं तब ही मन को विशेष-विशेष अवस्थाओं का पता हमें चलने लगता है। और तभी हमें यह पता लगता है कि हम अब तक नाहक हो जीवन भर भागते रहे जबकि सारा कुछ तो हमारे अन्दर ही मौजूद है, कस्तूरी मृग की तरह । ठीक इसी प्रकार जब हमें अपने अन्दर छिपे खजाने का पता लगता है तभी हम जान पाते हैं कि इस मार्ग के साधक या योगी लोग किस प्रकार से अपने सामने वाले के मन के विचारों को भाँप लेते हैं और उसी के अनुसार वे उसका भविष्य भी बता सकने में समर्थ हो जाते हैं।
वर्तमान में केवल भविष्य ही परिलक्षित होता हो ऐसा नहीं हैं । भुत जो गुजर गया है वह भी अचेतन मन को समझ लेने के पश्चात हमारे सामने खुलकर आ जाता है । अनायास इस दुनियाँ में कुछ भी नहीं होता है । हमें जो पहले लगता था सारा का सारा संसार एक इतफाक है। यह कोरा भ्रम ही है कार्ल मार्क्स की तरह । सारा का सारा यह सांसारिक ताम-झाम एक दूसरे से सम्बिन्धित है, गुथा हुआ है । अन्यथा यह दुनियाँ कब की बिखर गयी होती।
इस बात को अच्छी तरह समझने के लिए यह जरूरी है कि आप स्वयं ही
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