SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेतन मन से अचेतन मन पर पहुँचने का फल ही सिद्धियाँ पंडित की गलती को नहीं पकड़ पाते । जबकि छोटा बालक जो मन से केन्द्रित होकर उस कथा को सुन रहा था, रात को सोते समय अपनी मम्मी से कहता है कि, " मम्मी-मम्मी सुबह पंडित जी भगवान जी की कथा को बीच में से छोड़कर पढ़ गये थे ।" ४६ भस्मी कहती है, "नहीं तो ।" तब वह फिर कहता है, "हाँ, मम्मी जब आप प्रसाद बनाने में लगी हुई थीं ।" और इसी के साथ बात आयी गयी हो जाती है । इस तरह से हम देखते हैं कि प्रार्थना भी हम इस तरह से करना चाहते हैं जिसमें कर्म तो होता है लेकिन मन और वचन नहीं । इस कारण से यह प्रार्थना न होकर प्रार्थना का दिखावा मात्र ही होता हैं, जहाँ प्रार्थना ही नहीं है तो फिर किस प्रकार से हम प्रार्थना के मर्म को समझ पायेगें । कुछ लोग मन्दिर जाते हैं या वे किसी सिद्ध पुरुष ' के प्रति इसलिए श्रद्धा से भर उठते है कि वह महापुरुष हमारी अमुक परेशानी से अपने चमत्कारों का उपयोग करके हमें बचा लेगा । हमें मुकद्दमे में विजयश्री चाहिए, चुनाव में खड़े होना है। परमात्मा कोई ऐसा चक्कर चलाऐ जिसकी वजह से मेरे सारे प्रतिद्वन्दी अपना नाम ही वापिस ले लें और मेरा चुनाव निविरोध हो जाए | और यदि ऐसा हो जाय, तो सो रबदी गुरुद्वारा में कड़ा प्रसाद अपनी तरफ से चढ़ाऊँगा अथवा जो भी मनौती मैंने मान रखी हैं उसे अवश्य ही पूरा करूंगा। एक चोर भी चोरी करने जाते समय देवी माँ के मन्दिर में मनौती मानकर जाता है । यह दूसरे प्रकार की भूल है। क्योंकि यहाँ श्रद्धा तो है लेकिन मशर्त है । कहीं शर्त रखकर श्रद्धा की जा सकती है ? उसकी तरफ जाने वाले रास्ते तो बेशर्त हैं । जब वह हमें अपनी दुनियाँ में बेशर्त रहने देता है तो हम उसकी प्रार्थना में शर्त के साथ कैसे प्रवेश कर सकते हैं, कभी आपने उसे किसी पर भी यह शर्त थोपते हुए देखा है या तो मेरा नाम जपो नहीं तो मैं अभी तुम्हें मार दूंगा । वह तो इन बेकार की बातों से दूर और बहुत दूर है । For Private And Personal Use Only वार्षिक परीक्षाओं के दौरान मन्दिरों में बड़ी भीड़ लगी रहती है। लाइन लगी रहती है प्रसाद चढ़ाने वालों की । वे छात्र इस आशा के साथ प्रसाद पहले से
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy